"झलक"...

((dis is my only daughter "Jhalak Singh"...
and i'm d photogrepher for dis pic...))

आती है अचानक फिर विलुप्त हो जाती,
है नाम "झलक" इस प्रक्रिया का,
सुना करते थे होती हैं परियाँ भी,
कैसी होतीं हैं.. सोचा करते थे,
आई इक नन्ही परी घर में अपने,
रहती थी फलक के किनारे पर,
आई जब तो हुआ यकीं हमें भी,
उतर आई ज़मीं पर कहने पापा मुझे,
सोती है वह यूँ बेखबर,
जी चाहा हो जाऊं सरोबार मस्तियों में,
कैसे जगाऊँ इस प्यारी निंदिया से उसे,
बस होता है फक्र खुद अपनी ही किस्मत पर...

____________जोगेंद्र सिंह ( 30 मार्च 2010 ___ 08:46 am )

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Comments

2 Responses to “"झलक"...”

Unknown said...
5 May 2010 at 10:18 pm

thanx Aparna ji from her side...

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