दोस्ती


तब भी है..
यह दोस्ती..
जब तुम न कहो..
जब हम न कहें..
शब्द सीमाओं से..
है परे की चीज़ यह दोस्ती..
ज़ज्बात मेरे-तुम्हारे..
बयाँ कर पाए..
वह है दोस्ती..
बिन कहे जो समझ जाए..
वह है दोस्ती..
न होने पर किसी के साथ निभाए..
वह है दोस्ती..
बिन चाहत जो दे चाहत..
है वह दोस्ती..
क्या कहूँ मैं..
जो मन मैं है मेरे..
है वह दोस्ती.....(..जोगी..) ( 01 अगस्त 2010 )
.
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Comments

5 Responses to “दोस्ती”

Amit Gupta said...
1 August 2010 at 3:22 pm

kya baat hat bahi

#vpsinghrajput said...
1 August 2010 at 8:37 pm

बहुत अच्छी कविता.”
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किसी ने पूछा दोस्त क्या है ?

मैने काँटो पैर चल कर बता दिया

कितना प्यार करोगे दोस्त को?

मैने पूरा आसमान दिखा दिया

कैसे रखोगे दोस्त को?

मैने हल्के से फूलों को सेहला दिया

किसी की नज़र लग गयी तो ?

मैने पल्को में उस को चुपा लिया

जान से भी प्यारा दोस्त किसे केहते हो ?

मैने आपका नाम बता दिया.

Unknown said...
6 August 2010 at 2:46 am

thanx @ Amit.......... :)

Unknown said...
6 August 2010 at 2:46 am

बहुत खूब @ विजय प्रताप जी.......... :)

18 December 2010 at 2:46 am

दोस्ती खुशी का मीठा दरिया है

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