मैं एक हर्फ़ हूँ



मैं एक हर्फ़ हूँ..
मिले तुम भी एक हर्फ़ बनकर..
साथ जुड़े..
बना इक लफ्ज़..

साथ चले कुछ अरसा हम दोनों..
रंग जीवन के देखे संग संग..
लब, जुबान, वक़्त, जगह..
सब बदले..
तब भी..
न बदला संग हमारा..

जाने क्या हुआ अचानक..
तुम चले एक नयी दिशा को..
बनने भाग इक नयी कहानी का..
रह गया पीछे..
मैं तुम बिन..
पड़ा उसी कहानी में..

ऐ हर्फ़..
मेरे हमराही..
छोड़ मुझे क्यूँ चले गए तुम..
क्यूँ साथ मेरा न भाता तुम्हें..
नयी कहानी, नए अंतरे..
ह्रदय हुलराते अब तेरा..

सोच रहा हूँ..
तलाश रहा हूँ..
नयी सम्भावना..
फिर संग हो जाने की..

आये फिर से कोई..
खोज करे इक नए लफ्ज़ की..
और हो जाये प्रादुर्भाव..
फिर एक नयी कहानी का..

जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 09 अगस्त 2010 )

Photography by : Jogendra Singh ( Mumbai )

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