नारंगी की शहादत


नारंगी की शहादत (व्यंग्य कविता)
Copyright © 2009-2011

खुद से शहीद होने का देखो जज्बा ,
आया है कितने जोरों से ,
जो सर में भरा वह रस अर्पण करने का ,
देखो जज्बा आया है कितने जोरों से ,
आदम के नाम अब लिखी जायेगी शहादत ,
क़ुरबानी यह मेरी व्यर्थ ना जायेगी ,
दिल किसी का चाहे सुन्दर न बना सकूँ मगर ,
तन उसका सुन्दर बना के रहूँगा ,

आदम न रहा अब पुराना सा ,
ह्रदय परिवर्तन अब कोई ना चाहे ,
सब चाहें तन हट्टा-कट्टा सा ,
दो डोले यहाँ, दो डोले वहाँ पे चाहें ,

माँ-बाप पड़े कुठरिया में ,
अनब्याही बहिन बैठी घर में ,
करें चाकरी ये लुगाई देवी की ,
बालपन से बडेपन तक ,
सेवा में पिदाया जिस माँ को ,
तरसे वह माँ दो बूँद पानी को ,
काँधों पे लाद घुमाया जिस बाप ने ,
कन्धों का जिसने उसे सहारा ना दिया ,
उस बदबख्त के नाम पर मेरी शहादत ,

क्या हुआ जो वह बिगड चुका अब ,
कसम मुझे तन से निकले आखिरी कतरे की ,
अब भी निभाऊंगी उत्तरदायित्व अपना ,
नित देख मेरे स्वधर्मार्थ प्राण त्याग ,
कभी तो बदलेगा नराधम..?
जाने कब बनेगा मानुष, मानुष का बच्चा...!!

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (12-03-2011)
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