आदत सी हो गयी है..


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आदत सी हो गयी है,
बरसों से,
चुप रहने की,
अब आदत सी हो गयी है,

सड़क किनारे चलती बुढिया का,
चलते राहगीर की ठोकर से,
गिर पड़ने पर चुप रह जाने सी,
हो चली है ये आदत,

पढ़ने के बहाने,
बच्चा छीन कहीं भेज देने पर,
चुप रह जाती माँ सी है ये आदत,

घर में अबोला जीवन,
गुजार देने को बेबस,
मजबूर पत्नी सी,
हो चली हैं ये आदत,

कभी मन में,
सवालों का घेरा लिए,
अपूर्ण विद्रोहों के भंवर सी,
तूफान लिए,
फिर हौले से उन संग,
ढलती जाती पत्नी सी,
हो चली हैं ये आदत,

कभी दोनों हाथों की अंजुल में,
फंसी फिसलती रेत सी,
हो चली हैं ये आदत,

कितना कहा,
समझाया मन को,
कहता है,
न शिकवा न शिकायत है कोई,
न दर्द का अहसास है बाकी,

घाव पर मिले घाव से,
गुम होते, कम होते दर्द के,
अहसास सी हो चली हैं ये आदत...!!

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 14 मई 2011 )

Note :- मैंने यह कविता असल जीवन में किसी अपने से प्रेरित होकर लिखी है ...
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