खोया चाँद



खोया चाँद


उम्र निकल चली खोये चाँद को खोजने में...
नामुराद कमबख्त मिलकर ही नहीं देता...


जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 04-09-2011 )
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Comments

2 Responses to “खोया चाँद”

Dileepvasishth said...
4 September 2011 at 12:18 pm

जोगी भाई, चित्र के साथ भाषा पिरोना, सच्च मे प्रशंसनीय है.....लगता है आपका चाँद लहरोँ मे घुल गया है।।।जोगी भाई, चित्र के साथ भाषा पिरोना, सच्च मे प्रशंसनीय है.....लगता है आपका चाँद लहरोँ मे घुल गया है।।।

Unknown said...
4 September 2011 at 12:22 pm

● दिलीप , मेरे दोस्त...
लेखन को सही ढंग से समझ और समझकर कमेन्ट करना उस सच में लेखक के लिए एक बड़ी बात होती है जिसके लिखे पर वह टीका किया गया है... शुक्रिया दोस्त... :)

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