वो लाश मेरे सपनों की है



वो लाश मेरे सपनों की है ● ©

पूस की एक सुबह,
गीली अधजली लकडियों से,
निकली कालिख पुता चेहरा लिए,
देखो चली आ रही है,
वो लाश मेरे सपनों की है...

भ्रमों तले दबी ख्वाहिशें,
जाने कितने सपने बुन,
ओस के धुंधलके में,
विलीन हो जाती जिसकी,
वो लाश मेरे सपनों की है...

सिमटे, कुकडे, ठिठुरते,
एक दूजे पर लदे-पदे,
कोने में दुबके कुक्कुर समान,
गर्मी के अहसास को तरसती,
वो लाश मेरे सपनों की है...

भीषण एकाकी अहसास,
वीभत्स अतृप्त कामनाएं,
ह्रदय दहलाती परिस्थिति में,
किसी के होने का भान पाती,
वो लाश मेरे सपनों की है...

अधूरी इच्छा ह्रदय में सहेजे,
अपने अकेलेपन को तज,
मासूम निगाहों से,
तुम्हारी ओर तकती,
वो लाश मेरे सपनों की है...

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (21-12-2011)
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Comments

2 Responses to “वो लाश मेरे सपनों की है”

vandana gupta said...
22 December 2011 at 12:50 pm

वेदना का स्वर मुखर हो गया।

Unknown said...
22 December 2011 at 2:46 pm

धन्यवाद वंदना जी.......... :)))

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