● सर्द रात ख्वाबों में ● ©
सर्द रात ख्वाबों में
लापतागंज से मिली जिंदगी
ढूँढ लाया फिर से अपनी
कोहरे में गुम होती जिंदगी
थेगडों से अंटी कटी
फटेहाल मरणासन्न
जर्जर बूढ़े की कमर सी झुकी
निस्सहाय सी वह जिंदगी
बेसाख्ता पलक झपकाती
लापता में पता खोजती
असमंजस में भटकती
हैरान परेशान सी जिंदगी
● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (22-12-2011)
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Comments
4 Responses to “सर्द रात ख्वाबों में”
सच है लापता में पता खोजती हैरान परेशां सी होकर रह गई है ये जिंदगी... बेहतरीन अभिव्यक्ति...
संध्या जी ,
आपकी राय पहली बार मिली...
अच्छा लगा... आपका आभार दोस्त... :))
बहुत खूबसूरत ..
▬● अमृता तन्मय ,
आपका आभार और नववर्ष की शुभकामनायें भी......
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