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किसे दिखाऊँ अधूरी ख्वाहिशें ● ©
शाम की स्याही सा स्याह चेहरा,
दडबे से चुराए अंडे सा जर्द,
आँखों के कोटर से जब देखा,
पीला जर्द पड़ चुका चेहरा अपना,
ढुलमुल हौले गिरते क़दमों से,
आज फिर मैं बढ़ा जा रहा था,
चिर-परिचित लहरदार उस,
त्रणपूरित सूखी पगडण्डी पर,
हाल ही तो तआर्रुफ़ मिला,
बंजर से अपने जीवन का,
पलती हसरतें अबोधपन में,
क्योंकर दरकती जाना है आज,
सर पे न लहराया साया कभी,
न ओट मिली धूप में कभी,
खुले आसमान तले बेजरुरी,
भीगते न चंदोवा मिला कभी,
देर तक भीगी, फूलकर बदरंग,
शफ्फाक हुई, त्वचा सा जीवन,
भुंजते भाड़ से निकलकर आयी,
राख सा बदबख्त बना जीवन,
रात तडपती भूखी आंतों सी,
लपलपाती अतृप्त आत्मा सी,
जाकर किसे दिखाऊँ चुभती,
सारी अपनी अधूरी ख्वाहिशें..?
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जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 23-01-2012)
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