● Mr. & Mrs. Title. ●
Dear Mrs. Title,
सुबह ही से धड़का सा लगा हुआ था | एक अंजाना सा डर, एक सिहरन जिसने लगातार रीढ़ में सनसनी सी बनाये रखी थी | हर आहट पर दिल उछाले लिए बाहर आने को तत्पर | लग रहा था रहा था जाने अब क्या हो | क्या सच ही मैंने तुम्हें खो दिया? अभी कल रात ही तो जरा सी बात हुई | वो भी पूरे चार दिन के अबोले पश्चात् | कैसे न करता? तुमने कह कैसे दिया 'देखना एक दिन तुम्हारी पहुँच से इतना दूर चली जाऊँगी कि न कभी आवाज सुन पाओगे न अपनी सुना पाओगे |' अरे!! तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गयी ऐसा कहने की | :(ठीक है तुम अलग होना चाहती हो कि तुमको ऐसा लगा कि मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं तो क्या हुआ तुम मेरा दिल नहीं समझ सकीं | क्या तुम जानती नहीं कि तुम्हारे बगैर अब भी मुझे केयरलैस रह जाना अधिक पसंद है? तो बात यूँ है 'मिसेज तितले' उधर तुम तुजो (दुखी होवो) इधर हम गलते रहें, कहते हुए कि बाकी ही क्या रह गया इस जीवन में कितना सही है?
कितना समय गुजरा दीन-दुनिया से बेखबर जीवन जीते कुछ खबर भी है तुम्हें? कल रात तुम्हारी आवाज में लिपटा क्रंदन क्या मैंने सुना न होगा? या मेरी भीगी आवाज से तुम्हारा अंतस पसीजा न होगा? एक दूसरे से दूर रहते ह्रदय में एक दूसरे को बसाये कैसे रह पाएंगे हम? जो दूरी में भी साथ ही रहना है तो दूरी किसलिए? ऐ हिप्पो आ जाओ ना वापस !!! कोई बात कोई सफाई नहीं देनी मुझे कि हर बात अब तुम्हें जुबानी जमा खर्च लगने लगी है | तुम्ही क्यों न बता जाती मुझे कैसे करूँ डिफ़्रेन्शिएट दिल और जुबान से निकली बातों को? बालपन से यही जाना है जो मन में है उगल दो, सामने वाला अपना है तो हर हाल में समझेगा | परन्तु ये टेढ़े-मेढ़े अंतर? कैसे इन्हें इससे या उससे अलग करके बताऊँ कि ये ऐसा नहीं, ये वैसा नहीं, ये तो बस वो है जो गर तुम भीतर झाँक सको तब भी यूँही नजर आयेगा | जाने कैसे कर पाए थे बजरंगी किसी ने कहा झट अपनी छाती चीरकर दिखला दी कहते हुए "देखो किसी मणिमाला में नहीं मेरे प्रभु, वे तो बसे सीधे मेरे ह्रदय कपाट मध्य" | शायद मेरे न चीर पाने से तुमको वह सब नजर न आता हो जो है कहीं दबा-ढंका |
हःह्ह्ह...आज फिर रुक गयी कलम | और आगे लिख पाना जाने बस में ही न रहा ! शायद गरीब बच्चे के हाथों की पेन्सिल है जिसे एक हद तक छील पाना, साँचागत कर पाना तो संभव है परन्तु उपरांत उसके आगे लिखने के लिए पेन्सिल को भी बजरंग बली की छाती की तरह बीच से चीरकर दो फाँक बना उसमें से निकली काली लैड को पकड़ नया लिखने लायक बनाना पड़े | और जो यह आखिरी लैड भी चुक चुकी हो तब? मेरी तो हर नयी कलम तुम ही से है 'Mrs.तितले', तुम्हारे जाते ही बे-कलम रह गया मैं |
तुम्हारा (जाने हूँ भी कि नहीं),
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