● भीड़ में अकेला....
● कैसा लगता है जब आपके चारों ओर जमघट लगा हो और तब भी आप अपने आप को पूर्णतया अकेला पाते हैं.....? जिन्हें अपना समझ रहे हों उन्हें अजनबी पाना , सच बड़ा पीड़ादायक होता है..... आसान नहीं है इस अहसास या इस नकली भीड़ के साथ जीना.....
● हाँ आज थोडा सा अपसेट हूँ..... या शायद थोडा सा और.....
● हाँ आज थोडा सा अपसेट हूँ..... या शायद थोडा सा और.....
● जोगी :( ( 02-07-2011 )
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Comments
6 Responses to “भीड़ में अकेला....”
कितने अजीब रिश्ते यहाँ के
दो पल मिलते हैं साथ\-साथ चलते हैं
जब मोड़ आए तो बचके निकलते हैं
यहाँ सभी अपनी ही धुन में दीवाने हैं
करें वोही जो अपना दिल ठीक माने है
कौन किसको पूछे कौन किसको बोले
सबके लबों पर अपने तराने हैं
ले जाए नसीब किसको कहाँ पे
कितने अजीब रिश्ते यहाँ के
ख़्वाबों की ये दुनिया है ख़्वाबों में ही रहना है
राह लिये जाए जहाँ संग\-संग चलना है
वक़्त ने हमेशा यहाँ नये खेल खेले
कुछ भी हो जाए यहाँ बस खुश रहना है
मंज़िल लगे क़रीब सब को यहां पे
कितने अजीब रिश्ते यहाँ के.........
▬● सुमित जी , बहुत खूबसूरत गाना है दोस्त......
जोगी जी ..
बहुत ही सुन्दर है आपकी भावनाओं का संसार ...
आता रहूँगा बार बार.....
सादर अभिनन्दन कीजिये स्वीकार ...
▬● श्री भईया , उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद...... :)
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
▬● कविता जी , शुभकामना के लिए बहुत-२ धन्यवाद.....
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