चुड़ैलन काकी (कटाक्ष)
आज हमारी चुड़ैल गजब ढा गयी | जाने कब किस तरह एक दिन बगल वाले मैदान से सटे उससे परे वाले कब्रिस्तान से होकर गुजरी और थकन से बावस्ता हो सुस्ताने के लिए वहीँ बनी एक पुरानी कब्र को अपने पृष्ठ भाग से अलंकृत कर बैठीं | दरअसल ये उनके घर आने जाने का शॉर्टकट था वरना घूमकर जरा लम्बा रास्ता भी था जिसे इस्तेमाल किया जा सकता था | पता नहीं कब लेकिन अब कबर तो घर जैसा लगने लगा है उसे | आना जाना तो लगा ही रहता था लेकिन अजीब तो हम जैसों के लिए था कि आखिर ये कैसे ?
लेकिन असल किस्सा कुछ यूँ हुआ कि आरामपरस्ती कुछ इस कदर हावी हुई कि एक दिन अचानक घर से लायी चादर का किसी खाली कबर में बिस्तर लगाकर लेट गयी और बड़ा सकून मिला | बाद में कबर के मालिक सुक्खा भूत ने बहुतेरी कोशिश कर ली लेकिन है मजाल जो मैडम ने कब्ज़ा छोड़ने के बारे में सोचा भर भी हो !! आज तक बेचारा इंसानी अदालत में इससे केस लड़े जा रहा है और आप तो जानते ही हैं हमारी हिन्दुस्तानी अदालतों को | तारीख पे तारीख बस और क्या | अब तो बेचारा सुक्खा भूत बूढ़ा होकर मरने भी वाला है | और देखना जल्दी ही इन्सान बनकर आयेगा अपने सारे बदले चुका लेने के लिए इस इंसानी चुड़ैल से |
परन्तु अभी मारा नहीं था सुक्खा भूत सो भोगना अब भी बाकी था | एक दिन जा चिपटा एक नेता से कहा निज़ात दिला मुझे इस चुड़ैल से नहीं मैं तेरी ही मत फिर देने वाला हूँ | पहली बार मूर्त रूप भूत देख हुई नेता की सिट्टी-पिट्टी गुम और आनन-फानन में जाने कितने डिपार्टमेंट मय मजमा सारा जमा कब्रिस्तान में नजर आये | चुड़ैल बोली कम नहीं हमारी बिरादरी भी और सीधे अन्ना तक है पहुँच हमारी | सबकी नहीं एक की बैंड बजने लायक स्टिक तो होंगी ही बाबा अन्ना के पास | और सुना है हर दूजे दिन बाबा दाढ़ी भी संग हो सुर मिला लेता है | जाने कैसी जड़ी-बूटी है खाता कि बेसुरा भी सुर उगलने है लग जाता | कहा नेता से कि बेटा क्या समझता है तू कि ये लोग काला धन लाकर लोकपाल लायेंगे ? ना बेटा ना , आज नहीं तो कल तेरी ही लोकसभा में तेरे ही बगल में लोकपाल ही के दम पर बैठे नजर आएंगे |
पापी नराधम तू चिंता ना कर तेरी "चिंता ता चिता-चिता, चिंता ता ता" तो मैं अक्षय ही से करवाने वाली हूँ | सुना है आजकल भगवान बना घूम रहा है | सुना तो ये भी है आज खुद भगवान पे केस इंसानी अदालतों में चलने लगे हैं और सम्मन जाने कैसे स्वर्गलोक तक डिलीवर किये जाते होंगे ? इतना सुनते ही सुक्खा भूत सूखते-सूखते सींक बन किसी झाड़ू का भाग बन खुद को सौभाग्यशाली समझने लगा और नेताजी ने जब नजर पिछड़ी डाली तो सिवा खुद की पिछड़ी और कुछ नजर तक न आया बेचारे को | सर पर पैर रख जो तीतर बने पूरे एक महीने किसी को दर्शन लाभ न दिए महामुनि ने |
इतना देख अगल-बगल की कुछ कब्रें दहशत ही से वीरान हो गयीं कि ये लंका-मईया तो हमें भी न छोड़ेगी | होना जाना क्या था कब्रिस्तान में वन रूम खोली ने विस्तार पाया और अब फाईव बी.एच.के. के ठाठ मुहैया पूरे खानदान को कराया |
उधर कबर में लटकी चुड़ैलन सोच रही थी कैसा है जमाना आया, क्या नेता क्या भूत सब को हमने है रुलाया | नाम लिया बस गंदाये सिस्टम का और दहशत से खुद पूरा सिस्टम ही झोली में सिमट आया |
जोगेंद्र सिंह सिवायच Jogendra Singh
(26-09-2012).
Comments
One response to “चुड़ैलन काकी (कटाक्ष)”
बहुत ही खूब...उम्दा लेखन |
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