सूत का गट्ठर (04-09-2013)
सूत पर सूत या तांत पर तांत,
यूँ उलझन भरा ज्यों समूचा मकडजाल,
हर तांत पर उकेरा हुआ एक नाता मेरा,
समीप से दूर तलक जाती हर लकीर पर,
उकेरा गया आज एक धोखा कोई,
आँसुओं से धो-धो बंद पलकों तले,
लिखी जा रही एक कहानी नयी,
भस्म-ऐ-चिता मेरे भरोसे की,
ले माथे अपने रगड़े जा रहे सभी,
ह्रदय धमनियों में प्रवाहित मासूम,
कोमल भावों को दिमागी क़दमों तले,
पल-पल कुचले चले जाते हैं सभी,
पतले सुएनुमा पांवों का जंज़ाल लिए,
आज तथाकथित वे सारे मेरे अपने,
घेरकर क्यों गट्ठर बना जाते हैं मुझे?