● लहर हूँ मैं ● Copyright ©
लहर हूँ मैं,
विशाल सागर के सीने पर,
बलखाती-मचलती,
पतली सी,
एक लहर हूँ मैं,
लिया है अभी अभी,
मैने जन्म,
यूँ तो मौजूद हूँ मै,
पहले ही से,
पर है नया अब,
एक नया स्पन्दन,
मेरे भीतर,
उस रेत के लिये,
जो है,
उस किनारे पर,
चाहती हूँ छूना,
मगर,
जाने आ जाती हैं कहाँ से,
ये काली चट्टानें,
बनके अवरोध,
रोक देती हैं मुझको,
चाहती हूँ छूना,
मैं उस रेत को,
मगर,
जाऊँ कैसे,
उस पार,
चाहती हूँ,
महसूस करना,
उस रेत को,
कि शायद,
है यह एक नयी अनूभूति,
कि शायद,
कहीं,
ये प्यार तो नहीं,
कह नहीं सकती,
मैं ठीक से,
कि शायद हो वही यह अनूभूति,
हाँ शायद,
ये मचलते कोमल अरमान,
मेरा प्यार ही तो है,
उस रेत के लिये,
जो है,उस पार,
उन काली चट्टानों के,
जाऊँ कैसे,
कैसे मिलूँ मैं,
उस अपने मन मीत से,
नहीं छोडूंगी,
अपनी आस,
रखूँगी जारी टकराना तब तक,
कण कण हो, बिखर न जायें वो काली चट्टान,तब तक.....
● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (25 February 2010)
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Comments
2 Responses to “लहर हूँ मैं”
Ek Sakartmak soch ko darshati ek behtareen rachna...........badhai............:))
▬● किरण , धन्यवाद दोस्त......
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