केवल लोकपाल..?


● केवल लोकपाल..?

● जब तक लोकपाल की पालना हमेशा तक के लिए निश्चित नहीं कर दी जाती तब तक मेरे लिए लोकपाल भी पुराने कानूनों की तरह से रद्दी कागज हैं जिन्हें रखने से कोई फायदा नहीं जबकि उसे बेच देने से किसी को एक दो वक्त का खाना जरुर मयस्सर हो जाना है.....

● सो काहे का जश्न.....?

● सही बात कभी भी कही जा सकती है....... इन लोगों ने गाडी तो चला ली है मगर पेट्रोल और मैप साथ लेना भूल गए हैं....... केवल लोकपाल क्या तीर मार लेगा जब तक कि जनता और शासन तंत्र दोनों में मन से जागरूकता ना आ जाये.......? इन्हें आन्दोलन कागज पास करवाने से आगे तक के लिए छेड़ना चाहिए था....... 

● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh
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बहते आँसू



बहते आँसू

उन्होंने कहा क्यूँ जाते वक्त हैं पलकें भीगी ,
हम तो बस कह गए बात मुस्कुराते हुए ,
देखते हैं बहाकर हम यादों को तुम्हारी ,
क्या जाने इसी बहाने फिर आ जाओ ,
तुम बहते हमारे आँसुओं की खातिर..

_____●_____ जोगी ( २८-०८-२०११ )
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कठपुतली

कठपुतली... ? ©


कैसी है रे तू कठपुतली...... ?

तेरे नाच पे सारा जीवन नाचे है,

समझ से हमने समझा अपना जिसे,

वह जीवन तुझ सा अब लगता क्यूँ है...?



जोगेन्द्र सिंह Jogendra singh ? ● ? ● ? ● ? ● ?

● ( 25-08-2011 )
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आजाद कहाँ हैं हम...?

आजाद कहाँ हैं हम...?

गुलामी जो घर से शुरू होती है वो दरवाजा पार करने पर भी नहीं रूकती..... घर वाली गुलामी तो सांकेतिक है जो जताती है कि बेटा अब सारे संसार में तुझे जी हुजूर ही कहते जाना है..... चाहे दफ्तर हो , पुलिस , राजनीती , और जाने कैसा कैसा गुलामी का दलदल भरा है सब जगह..... और हम कहते हैं कि देश आजाद हो गया.....

● __________ जोगी     :(
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मानसिकता परिवर्तन

मानसिकता परिवर्तन (दर्शन) :

एक बड़ा सच यह भी है कि दुनिया का सबसे कठिन काम जमी हुई मानसिकताओं को बदलने का है....... जिसे असंभव की हद तक कठिन कहा जा सकता है...... क्यूँ आम तौर पर जब खुद हम ही नहीं बदलना चाहते तो कोई दूसरा ही कैसे बदल जाना है..... वह भी तो उसी कोशिश में लगा है..... 

● जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 09-08-2011 )

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हर शख्स तनहा


हर शख्स तनहा होता है , हर लफ्ज़ तनहा होता है,
वह तो लेकर किसी का साथ मिट जाती है तनहाई,
वरना हर लफ्ज़ तरसता है यहाँ अपने अंजाम को...

__________ जोगी     ( 07-08-2011 )
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खामोश हिरनी

: खामोश हिरनी :

दूर खामोश हिरनी सी कुलाचें भरने में व्यस्त हो तुम,

क्या जानो कैसे बनी मेरे ह्रदय चैनो आराम हो तुम,

ख्वाब देखे जब तो घटा बन हवासों में छाई हो तुम..

__________ जोगी  :))
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तुम्हारा अहसास


तुम्हारा अहसास Copyright ©

क़दमों के साथ मेरे, चले थे कदम मिलकर,
कुछ दूर जाकर देखा तो पाया,
अब भी कुछ दूरी पर थे वे कदम,

मेरे शब्दों के साथ, वाक्य बने थे शब्द मिलकर,
कुछ वक्त गुजरने पर देखा तो पाया,
खुद में सिमटकर सिकुड़ता मैंने उन शब्दों को,

साथ हैं हम, कुछ भ्रम सा लेकिन बना है,
कुछ आगे जाकर देखा तो पाया,
काल्पनिक महल सा हमारे इस नाते को,

कहने को कह लेता सब, तुमसे मिलकर,
कुछ सोच नयी सी आयी तो पाया,
श्रेयस्कर है कुछ न कहना अब तुमसे,

जड़ता तुम्हारी संज्ञाशून्यता से भरी,
रंग उसमें भरने गया तो पाया,
पड़ चुकी इक आदत सी है तुम्हें इसकी,

बेबस, पलकों के नीचे से तुम्हें तकता रहा,
जानने की कोशिश में तुम्हें, मैंने पाया,
जिन्दा आँखों के पीछे बनी मूरत इक पत्थर की,

ओंठ सिल लिए, मूँद ली मैंने पलकें अपनी,
जो खोल कर पलकों को देखा तो पाया,
मेरी ओर तकता हुआ बेबस निगाहों से तुम्हें..!!

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 03-08-2011 )

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