कविता बकना आसान नहीं



कविता बकना आसान नहींCopyright ©

उनकी "छवि" ने आकर कहा हमसे,
बक डालो फिर एक कविता नयी,
हम बोले कविता बकना आसान नहीं,
ये कोई पीकदान नहीं कि खाया हर बार,
और उगलकर तुम्हारे नाम कर दिया........ जोगी......... :)


Jogendra Singh जोगेंद्र सिंह ( 21 May at 01:34 )


यहाँ एक झोल है दोस्तों......
ना तो पीकदान खाया जा सकता है और ना ही पानदान..........
खाते केवल पान ही हैं..... असल में पूरा मतलब यूँ है कि ये कोई पीकदान नहीं है , कि हर बार खाकर , उसमें उगलकर , उगला हुआ तुम्हारे नाम कर दिया जाये.........
__________________________________________

● अभी कल (21 May at 01:31am) किसी दोस्त ने मुझसे पूछा कि रात के इस वक्त कविता लिखते हो क्या...?
● मैंने ज़वाब दिया "नहीं दोस्त..... कविता मैंने कभी लिखने के लिए नहीं लिखी..... वो तो अपने आप निकल आती है....... समय नहीं देखती...... "
● तो मुझसे कहा गया कि एक कविता बोलूं..... साथ ही सोचने तक का समय दिए बगैर यही बात रिपिटेशन मोड में डाल दी कि कविता तो अपने आप निकल आती है ना.....
● इस पर मैंने 21 May at 01:34am पर ये ऊपर वाली कविता लिख दी और उसके बाद जवाब में कहा "तुमने बोला लिखो तो मैंने लिख दी........ और ऊपर से तुमने समय देने की इच्छा नहीं थीं......... क्या करता यही लिख मारी तुम्हारी ओर........... "
● मजे की बात यह कि इसे लिखने में कुल तीन मिनट लगे थे जिसमें भी कुछ समय तो ध्यान भटका हुआ था.....
_____________________________________________
http://jogendrasingh.blogspot.com/
http://indotrans1.blogspot.com/
_____________________________________________
कविता बकना आसान नहींSocialTwist Tell-a-Friend

चित्रलेखा



चित्रलेखाCopyright ©

छूने चली सितारों को देखो आसमान तक,
चित्रलेखा बन सजायी लकीर मन्दाकिनी से,
वक्ती चिंता है यह जिसे आँखों में सजाये हो,
गम न करो जल्द इससे पार पा जाओगी,
दूर नहीं है कोई आसमान अब तुम्हारे लिए..!!


जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (17-05-2011)
_____________________________________________
http://jogendrasingh.blogspot.com/
http://indotrans1.blogspot.com/
_____________________________________________
चित्रलेखाSocialTwist Tell-a-Friend

मुस्कुराने की कोशिश



: मुस्कुराने की कोशिश :

मुस्कुराने की कोशिश में कुछ बिखरे न बिखरे मेरे दो ओंठ बिफरेंगे जरुर,
हाथ बढ़ाने की कोशिश में कुछ हाथ आये न आये पर हम बिखरेंगे जरुर...

_____ जोगी     :)     16-05-2011

.
मुस्कुराने की कोशिशSocialTwist Tell-a-Friend

चाक दिल



::::: चाक दिल ● Copyright ©

न सुनाना तनहाइयों को तुम यादों का संगीत...
न दिल में होगा सकून न लब पर हँसी होगी...
न होगा आना तुम्हारा खंडहरों के वीरानों में...
न इस चाक दिल से फूटेगी अब कोंपल नयी...


जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (16-05-2011)
_____________________________________________
http://jogendrasingh.blogspot.com/
http://indotrans1.blogspot.com/
_____________________________________________
चाक दिलSocialTwist Tell-a-Friend

आदत सी हो गयी है..


::::: आदत सी हो गयी हैCopyright ©

आदत सी हो गयी है,
बरसों से,
चुप रहने की,
अब आदत सी हो गयी है,

सड़क किनारे चलती बुढिया का,
चलते राहगीर की ठोकर से,
गिर पड़ने पर चुप रह जाने सी,
हो चली है ये आदत,

पढ़ने के बहाने,
बच्चा छीन कहीं भेज देने पर,
चुप रह जाती माँ सी है ये आदत,

घर में अबोला जीवन,
गुजार देने को बेबस,
मजबूर पत्नी सी,
हो चली हैं ये आदत,

कभी मन में,
सवालों का घेरा लिए,
अपूर्ण विद्रोहों के भंवर सी,
तूफान लिए,
फिर हौले से उन संग,
ढलती जाती पत्नी सी,
हो चली हैं ये आदत,

कभी दोनों हाथों की अंजुल में,
फंसी फिसलती रेत सी,
हो चली हैं ये आदत,

कितना कहा,
समझाया मन को,
कहता है,
न शिकवा न शिकायत है कोई,
न दर्द का अहसास है बाकी,

घाव पर मिले घाव से,
गुम होते, कम होते दर्द के,
अहसास सी हो चली हैं ये आदत...!!

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 14 मई 2011 )

Note :- मैंने यह कविता असल जीवन में किसी अपने से प्रेरित होकर लिखी है ...
_____________________________________________
http://jogendrasingh.blogspot.com/
http://indotrans1.blogspot.com/
_____________________________________________
.
आदत सी हो गयी है..SocialTwist Tell-a-Friend

स्वप्न ~ अधकचरे


स्वप्न ~ अधकचरेCopyright © 2009-2011

संग नयन अधर का जोड़ा,
दबे ओंठ हैं गालों गड्ढे,
सरगम सी तोहरी पायजेब,
करत तरंगित ह्रदय हिंडोला ,
स्वप्न लोक में विचरती सोच,

कोमला निर्मला कुमुदिनी सी,
निश्छल बालक सी मुस्कान,
सकुचाई शरमाई बतियाती,
आह कैसा विहंगम सृष्टा का,
हो परिणिति अधूरे स्वप्न की,
संग बगल बैठ बतियाते,
निद्रा मोरी हो गयी चंचला,
स्वप्न आते तुम न आती,

दबा खुला कहकहा तुम्हारा,
संगीत सा बतरस बाँटती,
हौले से छू जाना अवचेतन को,
खिलखिला कर हँस पड़ना,
फिर अनायास चुप कर जाना,
जाने कोई देख पाया शायद नहीं,
कितनी उत्कंठा लिए विचरता है,
चंचल हो चुका यह मेरा मन,

क्यों न संभव हो जाता,
समय का पहिया फिर से,
हो लेता विपरीत एक बार को,
वक्त बदलता काल बदलता,
संग बदल रचता रेखा नयी,
बनता ईश्वर एक दिन का और,
करता सृज़न नवजीवन का,

बावला ये मन समझे कैसे,
खुल चुके फिर चक्षु मेरे,
स्वप्न आते तुम न आती,
स्वप्न लोक में विचरती सोच,
दिवास्वप्न स्वर्गलोक सा,
बालमन सा ह्रदय मोरा,
कर रहा देखो किस प्रकार,
सृज़न फिर एक नए स्वप्न का ll

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (06-05-2011)
_____________________________________________
http://jogendrasingh.blogspot.com/
http://indotrans1.blogspot.com/
_____________________________________________
स्वप्न ~ अधकचरेSocialTwist Tell-a-Friend
Related Posts with Thumbnails