लापता

० लापता ०

जब से तुम्हें मंजिल जान दर-दर खोजा किया,
क्या जानो पता खोजते हो गये अब हम भी लापता...

० जोगेन्द्र सिंह...
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शिकवा

० शिकवा ०

गर चाहे कोई शिकवा करना.....
तब भी सुना है पत्थरों से शिकायत नहीं होती...

० जोगेन्द्र सिंह ०
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शुकर था

० शुकर था ०

मुश्किल है किसी से ये कहना,
किस कदर हुआ दिल तार-तार अपना,
वो तो शुकर था मेरी आँख ही बह निकली,
वरना आज भी वो चल देते फिर एक बार मुस्कुराकर..

० जोगेन्द्र सिंह ०

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जिन्दगी


क्या है जरुरत किसी को भूल जाने की,
जिन्दगी ही जब किसी संग इकसार हो जाने लगे..

जोगेन्द्र सिंह :-)

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कोई बिखर कैसे सकता है...?

कोई बिखर कैसे सकता है..?

कोई बिखर कैसे सकता है...
गर हो कोई अपना साथ हमारे,
जो हो वादा यह उमर भर के साथ का,
कयामत भी कैसे फिर कजा ला पायेगी...

जोगी (06/05/2012)
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