फितरत ::: ©


 फितरत ::: ©

आईने पे न शिकन है न किरचें कहीं.. उसे तो बस किसी की फिकर नहीं..
कह देखो शायद सुन ले वो तुम्हें भी.. वर्ना चेहरे बदलना है फितरत उसकी..

__________________जोगी  :((

.
फितरत ::: ©SocialTwist Tell-a-Friend

क्यूँ आज भी..? ©

क्यूँ आज भी..?  ©
कुछ लफ्ज़ कहें तुमसे या तुम हमसे... गया ज़माना हो गया है यह अब... क्यूँ आज भी..
लिपटाये बैठे हैं उन ज़र्द पत्तों को खुद से... सुना है आज फिर से कुछ नाते हवा हो गए हैं... 
__________________(जोगी..) ..... :((
.
क्यूँ आज भी..? ©SocialTwist Tell-a-Friend

बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©



बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©

शुरू में गज़ल सी , फिर भटकती लय है क्यूँ जिंदगी......
हर रंग भरा इसमें तुमने , सवाल सी है क्यूँ जिंदगी.......
ज़वाब दिए खुद तुम्हीं ने , फिर अधूरी है क्यूँ जिंदगी.....
माना है डगर कठिन , कदम बहकाती है क्यूँ जिंदगी.....
मंजिल का पता नहीं पर , राह भटकाती है क्यूँ जिंदगी.....

Photography & Creation by :- जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (21 दिसंबर 2010)

.
बहकाती है क्यूँ जिंदगी...? ©SocialTwist Tell-a-Friend

वंदे~मातरम :::

.
वंदे~मातरम :::
ये सिर्फ दो शब्द मात्र नहीं हैं जिन्हें जैसे चाहा मुँह खोल कर उगल दिया..... बल्कि इसके मायनों को समझना , उन्हें ह्रदय से अंगीकार करना और फिर इन शब्दों को सार्थक बनाने के लिए मातृभूमि पर हो रही हर गन्दगी से उसे मुक्त करवाने के कार्य पर लग जाना... तब मुँह से वंदे~मातरम निकाला जाना चाहिए..... 

जोगी :)

.
वंदे~मातरम :::SocialTwist Tell-a-Friend

!! वायु प्रवाह !! ©


!! वायु प्रवाह !! ©
(१)
वायु प्रवाह पर विचार !
अचानक उठा खयाल !
कितने होते हैं प्रकार ?
(२)
नाना हैं वायु प्रवाह !
कह चुकी संस्कृत भी !
वायु प्रकार के भेद भी !
मुख्य हैं तीन प्रकार !
उच्च निम्न मध्यम !
सप्तम सुप्त औसत स्वर !
(३)
भीषण मार सप्तम सुर !
भूकंप सा अहसास देता !
मध्यम है खदबदाता !
चौंकता और उछलता !
सुप्त स्वर नासा छिद्र में !
जाकर उत्पात मचाता !
(४)
ना देखा आते किसी ने !
घुसपैठ मचाता प्रवाह !
अनायास ही हो अवरुद्ध !
गवाह बनती सांसें स्वयं !
सर्व शक्तिमान फुस्स स्वर !
परिणाम देता उपस्थिति !
कर्ता भी कर्मण्य होकर !
दूजों संग दीदे मटकाता !
हस्त करने जाते अवरुद्ध  !
समूह संग नासा छिद्र को !
(५)
विस्फोटक सा प्रतीत होता !
सुर सप्तम पाद से निकला !
कर्ण प्रान्त में सुन्नता !
बिन गोले हवा में उड़ता !
बेचारा मानुस बस करता !
पहले उससे पकड़ा जाता !
दीदे फाड़ घूरते बहु नैन !
खुद के दीदे धरती पाते !
(६)
कैसा खेला देखो वायु का !
आती पर न कहता कोई !
स्वयं को छोड़कर सब पर !
अंगुली उठता है हर कोई !

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (17 दिसंबर 2010)

► दोस्तों , , , असल में विसर्जन भी अपने आप में एक कला है...... जितने इसके प्रकार हैं उतने ही परिणाम भी नज़र आते हैं....... जैसे किसी प्रकार से एकदम से लोग उड़न~शील हो जाते हैं तो वहीँ दूसरे प्रकार के परिणाम में जनता असमंजस में होती है कि क्या करें क्या ना करें....... उसमें अपना स्थान छोड़ देने वाले लोग फायदे में रहते हैं जबकि भ्रमित मनुष्यों को अपने नासा एवं मस्तिष्क को जज़ब देना होता है.......... वहीँ आखिरी शांत प्याकर में किसी को बचाव का कोई मौका उपलब्ध नहीं होता है....... जो होना होता है होकर ही रहता है....... फिर भी जाने क्यूँ लोग आखिरी वाले पर ही अधिक बड़ी प्रतिक्रिया देते हैं....... आशा है आप सबने इस रचना का आनंद लिया होगा........ धन्यवाद दोस्तों....... :)))
_____________________________________________
.
!! वायु प्रवाह !! ©SocialTwist Tell-a-Friend

बहुत खूब ::: ©




बहुत खूब ::: ©

बहुत खूब हमें कहते हैं वो..
बहुत खूब हमें लगते हैं वो..
खूब में खूबी लपेटे हैं वो..
क्या कहें होने पर शहीद भी..
बहुत खूब हमें कहते हैं वो...

जोगेन्द्र  सिंह Jogendra Singh (15 दिसंबर 2010)

.
बहुत खूब ::: ©SocialTwist Tell-a-Friend

पलायन वेग

आह्ह्ह्ह्ह्ह...
आज मैंने जाना , रॉकेट का प्रक्षेपण कैसे होता है...

पर क्या पलायन वेग कुछ कम नहीं रह गया.......???
कोई बात नहीं अगली बार अच्छी तैय्यारी के साथ प्रक्षेपित होऊंगी..
विश्व को इंधन संकट से बचाने की राह निकाल कर ही रहूंगी...


॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
यहाँ  हँसना मना है.. मना बोले तो बोलती पे फुल स्टॉप..
हँसने वाले की सजा ►ओठों पे सुई धागा..

चित्र का शाब्दिक हास्य रूपांतरण by जोगेन्द्र सिंह :))
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
पलायन वेगSocialTwist Tell-a-Friend

विराम चिह्न !! मेरे तुम्हारे नाम का ::: ©


विराम चिह्न !! मेरे तुम्हारे नाम का ::: ©

मैं जानती हूँ के साथ मिला..
कह दी मुझसे तुमने हर बात..
यत्र-तत्र-सर्वत्र करा दिया भान..
मुझ ही को मेरे होने का..

नाव पतवार के बहाने..
तो कभी..
तप्त ओस भाप-बादल के बहाने..

सूखे से जीवन में हरियाली सा..
ढाक-पत्तों से बने दोने सा..
अहसास उस प्रेम कुञ्ज सा..
लहलहाता फिर रहा जो..
बन आर्द्र आसक्ति सा जो..
बह रहा उस ओर से इस ओर..
सोता निश्छल तुम्हारे प्रेम का..
कुरेद-खुरच भीतर तक..
स्निग्ध तुम्हारे अहसास को..
जगाता नित प्रति मेरे अन्तस्तल में..

कहाँ से कहूँ..?
जानता हूँ मैं..
कि तुम्हारी हर बात..
पल में तोला माशा तुमने..
बरबस ही अपना कलेवर..
हर बार बदल डाला तुमने..

बिन प्रेम सुधा हरा ना होता..
अकिंचन यह जीवन कोरा..
ना समझोगे यह तुम..
अतिवृष्टि भी अनावृष्टि सी..
होती विनाशक समूची है..

अधीरता चपलता तुम्हारी..
प्रेम सुधा से सिक्त सिंचित..
सुकोमल मृदुल मन के भाव हैं..
पानी सम बस से बाहर फ़ैल रहे हैं..

कर लो बस में इनको नहीं तो..
बस पर भी बस ना रह पायेगा..
धीर-अधीर के मध्य तुम्हारा..
आतुर दृष्टिपथ के मध्य तुम्हारा..
मिल जाना है विराम चिह्न कहीं..
खोया-पाया सकुचाया सा..
विराम चिह्न !! मेरे तुम्हारे नाम का..

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (13 दिसंबर 2010)

Photography by :- Jogendra Singh
In this Picture :- Me.. (Jogendra Singh)
(Photo clicked by the help of mirror)
_____________________________________________
विराम चिह्न !! मेरे तुम्हारे नाम का ::: ©SocialTwist Tell-a-Friend


जिंदगी..©
जाने कितने रंग दिखावे है यह जिंदगी..
बिखेरने थे उसे जो हमसे चाहे ये जिंदगी..
माया फैला फँसा हमको देती है ये जिंदगी..
इशारों पर अपने है नाचती ये जिंदगी..
ना चाहें पर अपना बोझ लदाती है जिंदगी..
अनचाहे ही हम पर गहराती है ये जिंदगी..
कैसे पायें आज़ादी हम पे हावी है ये जिंदगी..

_____जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (07 दिसंबर 2010)

Photography for both pictures :- Jogendra Singh

.
SocialTwist Tell-a-Friend
Related Posts with Thumbnails