बड़ी हवेली



● बड़ी हवेली ●

(1)
     अपने पुराने स्टडी रूम की खिडकी तले लगी टेबल से मैंने सर उठाकर सामने वाली दीवार पर टंगी बत्तीस साल पुरानी घंटा-घडी को देखा | कुछ ग्यारह बजकर पच्चीस मिनट का समय दिखा रही थी | सैकंड का पतला कांटा नदारद था घंटे का छोटा सलामत और मिनट वाला अपनी उम्र के साथ उम्रदराज हुए बुजुर्ग की हाँईं कुछ टेढ़ा सा प्रतीत होता था | चीजें सभी थीं चाहे जीर्णावस्था में सही मगर चलकर दिखाए इन्हें जमाना हो गया था | अभी कुछ डेढ़ एक साल ही गुजर होगा जब टनटनाकर इसने अपनी आखिरी हुंकार भरी थी | बड़ा साथ दिया इसने मेरा, मुझे याद है आज से तेईस साल पहले तृप्ति के पिताजी इसे हमारी शादी की पंद्रहवीं सालगिरह पर बतौर गिफ्ट लाये थे | सहर्ष ही जिसे हम दोनों ने इस दीवार का हिस्सा बना दिया था | उस समय के हिसाब से शायद घड़ियों के नाम पर जरुर सबसे महँगा तोहफा रहा होगा | होता भी क्यों नहीं तीन गाँव के चौधरी जो थे ससुरजी | और हमारा ही रुतबा कौनसा कम था, साहेब बहादुर का ख़िताब हाँसिल था पिताजी को अंग्रेजी हुकूमत से | दिन-रात का हुक्का पानी चला करता था कभी गोरों का हमारे यहाँ | अपने इलाके के सबसे बड़े धनकुबेर थे पिताजी | आह.. कहाँ गये दिन वो सारे कि अब तक उन उमंगों भरे माहौल को जीने की हसरतें बाकी हैं |
(2)
    अनायास ही सामने का द्वार खुलने से आये चौंधे ने ह्रदय को भी चौन्धियाकर जताया कि बुलावा यथार्थ का भिजवाया हुआ है | आ गये जी कल्पलोक छोड़ क्षणभंगुर हकीकी संसार में जहाँ स्वयं मैं भंगुर हो जाने की उम्र में बैठा सोच रहा था अब कौन आया मुझसे मिलने ? देखा तो क्या पाता हूँ मेरा बरसों पुराना यार खुराना जिसके साथ जाने कितने बरस स्याह-सफ़ेद करते गुजार दिए थे | दौलत बहुत देखी मगर अब वही दौलत औरों के पास जब नजर आती है तो दाँत पीसकर रह जाता हूँ कि क्यों कभी मेरे घर में बरसों पुरानी चीजों के बदलाव की उमर आयी ही नहीं | क्यों मेरी उस पुरानी इम्पाला में सिर्फ हॉर्न ही बजकर रह जाता है ? क्यों मेरे दोनों बच्चे अब मेरे नहीं वरन अपनी जोरुओं के संग रहा करते हैं ?
(3)
     उठा भुनभुनाता हुआ मगर सामने ना पहुंचकर तिरछे लहराता हुआ झौंका खा गया और बायीं दीवार के सहारे रुक पाया | खुराना ने कहा भी था "आ जाऊँगा काके तू ना उठ, अब तेरे बस का नहीं ज्यादा चलना लेकिन तू सुनता ही कहाँ है?" खैर सहारा दे मुझे भी ले आया और चिल्लाकर कहने लगा "ओ, भाभी जी एक चाय कड़क वाली" | अरे काहे की चाय, कल से एक ही थैली दूध घर में आया था उसी की चाय पिए जा रहे हैं पानी मिला-मिलकर, कब समझेगा ये फोकटिया | बिजनेस में एक साथ घटा हुआ था तभी से दोनों फाकों पर जी रहे हैं | काम के नाम पर कुछ बचा नहीं, जमा पूँजी कुछ बना नहीं पाए, ऊपर से ये पनौती, बड़े बाप की बेटी "तृप्ति" | राज गये पर ठाठ न गये | बाप दारू पीते-पीते यमलोक सिधार गया और बेटों के लक्खन बाप से कुछ कम न थे हो गये धंधे लंबे | इधर महारानी की किटी पार्टीज कम न होंगी | उधार लेकर भी शौक पूरी करेंगी फिर चाहे कुछ भी गिरौ रखना पड़ जाए | नासपीटी अब जाकर समझी है जब एक थैली दूध के सहारे कई दिन गुजारने पड़ते हैं और खाने के लिए बहाने से लोगों के घर मिलने जाना पड़ने लगा है | कभी दो पैसे प्रॉपर्टी कमीशन से मिल गये तो ठीक वरना भिखारी हमसे बेहतर नजर आते हैं |
(4)
     किसी को कह भी नहीं सकते किस दशा में हैं | बड़ी हवेली के मालिक जो हैं | सत्तर की उमर हो चली अब स्वास्थ्य भी कुछ साथ नहीं देता | तृप्ति भी अपने गंठिया और कमर को लेकर हाय-हाय करती नजर आती है | रोजाना किसी न किसी की ठुकुर-सुहाती (मनुहार) करके जीवन की जरूरतें पूरी कर रहे हैं | एक दिन बड़ा बेटा पुरुषोत्तम सिंह दनदनाता आया और बिरादरी में फ़ैल रही बदनामी को लेकर चार बात सुना गया | उसके चले जाने के बाद धीरे से मेरे मुँह से बोल फूटे "इतनी ही चिंता थी अपने मान की तो लोगों से भीख लेने के पहले खुद ही क्यों नहीं दे जाता?" पर सुने कौन? जाने वाला तो फुर्र |
(5)
     दीमक लगी किताबों के कई चट हो चुके कई पन्नों को अज्यूम करके पढ़ना होता था फिर भी पढ़ने की आदत छोड़ नहीं पाया, वो अलग बात है कि सही अज्यूम इसलिए हो पता था कि सारे पन्ने बीते बरसों में जाने कितनी ही बार लगभग कंठस्थ हो रखे थे | बुढिया से ठीक से बन नहीं पायी | शादी के कुछ साल बाद ही से अलग रह रहे हैं जो आज तक चल रहा है | पत्नी सुख क्या होता है ये बात सिर्फ नये शादीशुदा ही बता सकते हैं, पुराना होने पर तो वे भी हसरतों भरी नजर से औरों को बस ताकते भर रह जाते हैं | ऐसा ही कुछ कहना हमारी अर्धांगिनी का भी था फिर जाने कौन सही कौन गलत | बहुधा कहा करता किसी दिन बाहर जाऊँगा तो लौटकर मुँह देखने भी नहीं मिलेगा क्यों करती है इतनी हत्या? हर बार कहती बुढऊ तुम एक बार शहीद होकर तो दिखाओ, एक कतरा भी बहा दिया ना तो मेरा नाम नहीं |
(6)
     आज सुबह से ही मन कुछ विचलित सा हो रहा था | खुराना चला गया लेकिन अपने पीछे कई सारे अबूझ सवाल छोड़ गया | बोला कौन है जो तेरे साथ रहेगा? मान ले भगवान न करे तू अकेला रह गया या तृप्ति भाभी ही अकेली रह गयीं तो कौन होगा जो साथ होगा या काम आयेगा? और जिन्दा रहे तब भी कब तक दूसरों के यहाँ बहाने से पाए चाय-नाश्ते के सहारे पलते रहेंगे? कभी तो लोग दुत्कारेंगे या खुद हम ही नहीं जा पाएंगे कहीं | अशक्त हो जाने के बाद भी कभी माँ-पिताजी की परवाह नहीं की और अब जब अपना समय आया तो वे सारे दिन चलचित्र बन सामने गर्दिश कर गये | बेशक ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन घर के कोने में जरुर रखा था लेकिन ये पुरु और रिपु ने तो खाने तक की सुध नहीं ली | इज्जत के नाम सैंकडों दुहाई दे जाते हैं लेकिन कभी ये न सोचा कैसे पलेंगे दो अशक्त प्राणी |
(7)
     बड़ी देर से पेट में कुलबुल सी हो रही थी | उधर तृप्ति भी इसी अवस्था में अपने कमरे में करवटें बदल रही थी जो उसके चरमराते पुराने पलंग की आ रही आवाजों से समझ आ रहा था | जाने कितने अरसे बाद फिर से प्रेम और दयाभाव का प्रादुर्भाव हुआ अपनी अर्धांगिनी के लिए | बड़ा तरस आया बेचारी पर और पहली बार सीधे असल वजह बता किसी से माँगकर भरपेट भोजन की व्यवस्था करने हिलते शरीर के साथ बाहर को चल दिया | हवेली से निकलते ही किसी उद्दंड बालक की साईकिल से टकराते-टकराते बचा | मुझे लगा ही था कि अभी दर अधिक बुरी नहीं हुई है लेकिन जब कई दरों से बैरंग लौटना पड़ा तब जाकर समझ आया कि क्यों आये दिन बेटे अपनी इज्जत का हवाला लेकर दो बात सुना जाते थे |
(8)
     यूँ ही भटकते बड़े चौक तक जा निकला जहाँ सबसे ज्यादा ट्रैफ़िक और चहल-पहल रहा करती है | किनारे से चल ही रहा था कि किसी जल्दबाज के टकरा जाने से मिले धक्के ने पीछे से आ रही किसी गाड़ी से टक्कर का आयोजन करवा दिया | धडाक की आवाज ब्रेक्स की चरमराहट अचानक उठाई चीखें दर्द की गहरी लकीर दिमाग से कमर तक और एकदम से सब घुप्प | निहायत ही बुरी किस्म का सन्नाटा | अपनी जगह खड़े होकर देखता क्या हूँ कि हर कोई मुझसे कुछ दूर देखे जा रहा है और किसी को मेरी पड़ी नहीं जबकि अभी हाल ही ठुका था | फिर जैसे ही उस ओर देखा जहाँ लोग आकर्षित थे एकदम से साकत अपनी जगह सुन्न खड़ा रह गया | नीचे फैलते लहू के छोटे तालाब के ऊपर कोई और नहीं मैं ही पड़ा था निश्छल, साकत, पूरी तरह शांत | चेहरा सड़क से खाक चाटता नजर आ रहा था और अजीब तरीके से ऐंठा शरीर सामने ही तो पड़ा था | बमुश्किल यकीन आया कि वो अब मैं नहीं रहा और ये मैं जाने क्या बन गया हूँ | लोगों से बात करने की कोशिश की परन्तु जैसे किसी ने न देखा न सुना | बाद का घटनाक्रम शांत होकर अपनी आँखों से देखा |
(9)
     गाड़ी बुलाई गयी, छोटा शहर होने से लोगों को पता था सो शहादत गुमनाम नहीं रही और पार्थिव सीधे हवेली पहुँचा दिया गया | बुढिया जो अपने कमरे से कम ही निकलती थी लोगों का सहारा लिए चुपचाप बाहर आयी और एकटक नीचे पड़े मुझपर नजरें टिकाकर वहीं पास बैठ गयी | सीधा करके मुझे चित्त लिटाया गया था और आने वालों की संख्या बढती जा रही थी | पास की दीवार की टेक लगाये एकटक देखती तृप्ति से किसी ने कुछ कहा और प्रतिसाद न पाकर हिलाया तो लद्द से बेजान अपनी जगह पर लुढक गयी | सैंतालीस साला वैवाहिक जीवन खत्म हो जाने के बाद पता चला कि मेरे जाने का गम उसे इतना विकट होगा कि देखते ही देखते परिंदा बाद वह भी मुक्त हो लेगी | वहीं दूसरी तरफ धीमी आवाज में पुरुषोत्तम और रिपुदमन में सह-पत्नी हवेली के बंटवारे को लेकर बहस हो रही थी कि किस तरह बहन को हिस्सा ना देना पड़े और खुद भी आधे से अधिक कैसे पा जायें | सामने ही खुराना खड़ा था मेरा यार | एक उसी के ओठों पर मंद-मृदुल सी मुस्कराहट थी जैसे कह रहा हो "जाओ दोस्त तुमने मेरी बात को सुनकर ऐसा हल निकाल लिया जिसके बाद आने वाली कोई परेशानी तुम दोनों को छू भी न पायेगी"| फिर चुपचाप से आँखों के कोरों पर आयी दो बूंदों को रुमाल में समेटते वहाँ से निकल लिया |

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (30-08-2012)
● Instant: +91-787-819-3320
.
बड़ी हवेलीSocialTwist Tell-a-Friend

Comments

No responses to “बड़ी हवेली”

Post a Comment

Note : अपनी प्रतिक्रिया देते समय कृपया संयमित भाषा का इस्तेमाल करे।

▬● (my business sites..)
[Su-j Health (Acupressure Health)]http://web-acu.com/
[Su-j Health (Acupressure Health)]http://acu5.weebly.com/
.

Related Posts with Thumbnails