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06 अगस्त 2010 के दिन मैं आगरा में था...
अचानक एक शानदार वाकया सामने आ गया जिसमें कानून के दो रखवाले किसी तीसरे के साथ ट्रिपल सवारी का आनंद ले रहे थे...
जिस मोटर-साईकल पर ये तीनों सवार थे उसका नंबर है - UP80-BJ - 0639
अब मेरा सवाल है कि जिन्हें कानून का प्रहरी बनाकर जनता से कानून पालित करवाने हेतु रखा गया है वे स्वयं जब नियम-कायदे तोड़ते नज़र आ जाएँ तो उसके लिए हमारे कानून में क्या प्रावधान है... और अगर उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही हो सकती है तो क्यूँ अधिकतर पुलिस वाले ही कानून तोड़ने में संलिप्त नज़र आते हैं.....?
व्यवस्था के रक्षक ही जब भक्षक बन जाएँ तो आम-जन पार कैसे पाए.....?
_____ जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 28-October-2010 )
Photography by :- Jogendra Singh
Place :- Agra ( near police lines ) ( 06-अगस्त-2010 )
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अकेला रावण ही क्यूँ जलाया जाये ? ::: ©
Thursday, 14 October 2010
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अकेला रावण ही क्यूँ जलाया जाये ? ::: © (गंभीर सवालिया लेख)
► हिंदू धर्म में राम-रावण को अच्छाई एवं बुराई के प्रतीक के रूप में देखा जाता है ...मेरा सवाल है कि क्या सिर्फ इसीलिए रावण को बुरे रूप में देखा जाये कि उसने सीता हरण किया था ... ?
► मेरी समझ में उस स्थिति में राम और रावण दोनों ही का कोई महत्त्व नहीं है जब एक को केवल संहारक और दूसरे को दानव के रूप में देखा जाये ... गौर से देखा जाये तो रावण किसी रूप में राम से कम नहीं था ... ज्ञान, बुद्धि, बल, शौर्य, नाम, महत्त्व, और जाने किस किस बात में राम से कहीं आगे था ... उस समय के ग्रन्थ देखे जाएँ तो साबित होता है कि रावण से बड़ा वैज्ञानिक उस काल में कोई था ही नहीं ... जिस काल में लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए पैदल अथवा घोड़े जैसे माध्यमों की आवश्यकता होती थी तथा-समय रावण बड़ी सहन से अपने उड़न-खटोले में उड़ा करता था ... अभी कुछ समय पहले टीवी में देखा कि श्रीलंका में रामायण काल के साक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं ... इस तरह की बनावटें भी मिलीं जिनसे अंदेशा होता है कि कभी इन्हें आज की हवाई पट्टियों की तरह इस्तेमाल किया जाता होगा और उस जगह किसी भीषण अग्नि-कांड के भी साक्ष्य मिल रहे हैं जैसे हनुमान द्वारा लंका-दहन वाली बात यहाँ सच प्रतीत होती हो ... श्रीलंका में आज भी जमीन में जगह-जगह जमीन में बिखरे रूप में गोलियाँ मिलती हैं जिन्हें रावण ने हवाई सफर के दौरान मितली से बचने के लिए दिया था ... वैज्ञानिक विश्लेषणों से साबित होता है कि उन गोलियों में उच्चतम किस्म के औशधीय गुण मौजूद हैं ... इस तरह के साक्ष्य उस समय के भारत में या लेखों में ढूंढें नहीं मिलते ... श्रीलंका सरकार इन्हीं मिलते जा रहे साक्ष्यों की सहायता से अपने देश के ट्यूरिज्म को बढ़ावा देने की कोशिशों में भी लगी है ... हर हाल में उस दौर में रावण से श्रेष्ठ कोई और नज़र नहीं आता है ...
► यदि और भी ध्यान से देखा जाये तो सीता कांड को छोड़ कर उसके साथ कोई भी दुष्कर्म नहीं जुड़ा दिखाई पड़ता है ... खुद रामायण में ही लिखा है कि सीता ने उस समझ के स्थापित मानदंडों के अनुसार लक्ष्मण की बात नहीं मान कर रेखा लांघ कर अनजाने ही रावण का साथ ही दिया था तो रावण के साथ-साथ सीता भी क्या दोषी नहीं हो जाती है ... आज की स्थितियाँ पृथक हैं मगर तब की परिस्थितियों अथवा मानकों के अनुसार जो सही माना जाता था सीता ने वैसा नहीं किया ... रावण का कार्य असामाजिक था पर सीता के नारीत्व को आहत न करके उसने संयम का उद्धरण दिया ... तब रावण तो दोषी है पर क्या सीता को क्लीन चिट दी जा सकती है ... ? उसकी आसुरी शक्ति या कर्म की बात करें तो आर्यों में ही कौनसा ऐसा राजा था जो अपने राज्य-विस्तार के लिए दूसरे राजा और उसकी सेना-प्रजा को मारना नहीं चाहता था ... ? या उसके राज्य को हड़प करने पर आमादा नहीं था ... ?
► मेरी समझ कहती है आप अपने भीतर से दुष्कर्मों, दुह्सोचों को निकाल फेंको तो आपके भीतर का कथित रावण तो वैसे ही अधमरा हो जायेगा ... और जो बाकी रहेगा वह आपको राम से भी ऊंचे स्थान पर ले जाने वाला है ... क्योंकि राम के नाम पर भी कलंक है सीता से अग्नि-परीक्षा लेकर अपनाने का और उसके बाद भी एक बेवकूफ धोबी के आरोप भर लगाने मात्र से सीता को फिर से वनवास भोगने पर मजबूर कर दिया ... क्या राम को यहाँ रावण से कम दर्जा दिया नाना चाहिए जिसने अपनी पत्नी को जिसे वह सात फेरों के और साथ जन्मों के बंधन की कसमों के साथ अपने महल लाए थे , को अनजान जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर कर दिया ... ? बाद में यह भी सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं की कि एक कमजोर स्त्री जंगलों में किस तरह सुरक्षित रह पायेगी जबकि जंगली जानवर एवं असुरों सभी का खतरा बराबर मौजूद रहता था ... कैसे राम ने इतना बड़ा कर्म कर डाला जबकि रावण उसे उठाकर अपने घर ले जा रहा था और राम ने खुद ही सीता को दुनिया के थपेड़े खाने के लिए दुनिया के ही हवाले कर दिया ... ?
► किसके भरोसे राम ने सीता को अकेले निकाल दिया था और जब बेटे बड़े हुए तो उनका सर्टिफिकेट भी नहीं माँगा , सीधा अपना लिया ... क्यूँ ... ? इतने ही उच्च थे तो अंतर्ज्ञान कहाँ गया था जब पत्नी को निकाला था ... और अगर यह सही था तो नया ऐसा क्या हो गया जो सीता को बच्चों समेत फिर से अपना लिया ... ?
► अब मेरा सवाल है कि अगर जलना ही है तो क्यों सिर्फ रावण का पुतला जलाया जाता है ... ? राम जिसने अपनी पत्नी को अपने झूठे मर्यादा निर्वाण के लिए एक रावण नहीं वरन पूरे संसार के हवाले कर दिया था उस पर सवाल कब उठेगा ... ? सोचने का विषय है कि ग्रंथों के अनुसार ही हर बात को क्या केवल इसीलिए वैसा मान लिया जाये जैसा कि उनके रचयिता दिखाना चाहते थे अथवा हमें अपनी स्वयं की तार्किक विश्लेषण क्षमता का उपयोग भी कर लेना चाहिए ... ? सोचो ... क्या पता कुछ नया समझ आ जाये ... ?
जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 14 अक्टूबर 2010 )
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नोट :- मेरे लेख में मैंने कहीं भी रावण को क्लीन चैट नहीं दी है बल्कि उसके साथ साथ राम की गलतियों को भी कठघरे में लाने का प्रयास किया है ...
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निर्झरण से झरण की ओर ::: ©
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कविता कोष
► निर्झरण से झरण की ओर ::: ©
समय का बहाव, पवन का प्रवाह,
सख्त भौंथरी चट्टान,
अब तीखे नक्श पाने लगी है,
न चाहते हुए भी,
मन का खुद को बरगलाना,
जैसे पानी का बर्फ बन,
चट्टान के भ्रम संग,
खुद को बरगलाना,
वक्ती थपेड़े पड़े हैं मगर,
आज नहीं कल ही सही,
बदलेगा प्रारब्ध मेरा भी,
क्षण-भंगुर हो,
भटक-चटक रही है,
चंचलता-कोमलता, मेरे मन की,
पिघल-बहाल हो रही है,
जैसे बर्फ की मानिंद,
अब और भी करनी है,
मेहनत करारी,
नयी भावुकता है,
नयी दुनियावी सोच है,
खा गए सोच पुरानी को,
मिल सारे दानव कलयुगी,
परन्तु अंत संग उदय भी है,
आँखें मूंदे नहीं दिखेगा,
मिंचमिंचाते ही सही,
खोल पपोटे देखा मैंने,
सामने है तैयार खड़ा,
मेरे स्वागत को आतुर,
सप्त-रंगी इन्द्रधनुष,
नयी आभा है प्रकाश नया,
गमन है मेरा,
निर्झरण की बर्फ से झरण की ओर..!!
जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 13 अक्टूबर 2010 )
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बेचारा सतयुग
Wednesday, 13 October 2010
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बेचारा सतयुगएक विचार ►
कलयुग में सात्विक शक्तियां क्षीण हो रही हैं , यहाँ चलते रहो निरंतर जैसी बात में हर क़दम पर एक अच्छी चीज़ कम होती चली जाती है.. आसुरी प्रभाव उत्पादक दौर से गुजर रहा है.. सद्गुणों को बचाए रखना उतना ही कठिन जतन हो गया है जितना कि सूखी रेत को ढीली मुट्ठी में सम्हाले रखना.. सतयुग का समानता का अनुपात अब डगमगा गया है.. एक के अनुपात में सौ हैं..
एक के साथ एक-दो हैं , तो वहीं सौ के साथ हजारों हैं.. तामसी से बचने के लिए उसी की छात्र-छाया दिखाई देने लगी है.. बेचारा सतयुग जाये तो जाये कहाँ ?
एक के साथ एक-दो हैं , तो वहीं सौ के साथ हजारों हैं.. तामसी से बचने के लिए उसी की छात्र-छाया दिखाई देने लगी है.. बेचारा सतयुग जाये तो जाये कहाँ ?
► ...जोगी... :(
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भाषाई मर्यादा
Tuesday, 12 October 2010
- By Unknown
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► एक विचार
► "सत्यम् वदम् - प्रियं वदम् , न वदम् - सत्यम् अप्रियम्" संस्कृत में कही इस बात से अच्छी बात और कोई नहीं ,,, क्योंकि भाषाई गन्दगी कितनी दूर तक असर डाल सकती है इसका कभी कभी अंदाज़ा तक नहीं लग पाता ... अक्सर बाद में उसे फ़ैलाने वाले भी उसके लपेटे में आ जाते हैं ... बेहतर है कि भाषाई सभ्यता और मर्यादा का भान और मान भी रखा जाये...
► जोगी... :)
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काँटा और गुहार :: ©
Sunday, 3 October 2010
- By Unknown
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Photography by : Jogendra Singh
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काँटा और गुहार :: © ( क्षणिका )
आसान नहीं है ...
पाँव से काँटा निकाल देना ...
हाथ बंधे हैं पीछे और ...
उसी ने बिखेरे थे यह कांटे ...
निकालने की जिससे ...
हमने करी गुहार है ...
►जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 02 अक्टूबर 2010 )
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कल रात सागर से :: ©
Saturday, 2 October 2010
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कल रात सागर से उठती-गिरती लहरें...
प्रबलतम वेग से अपनी तीव्रता का अहसास करा रही थीं...
उसी तीव्रता से तुम भी मेरे ख्यालों में थीं...
सोच रहा हूँ काश, खयाल ही जीने का जरिया हुआ करते...
► जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 01 अक्टूबर 2010 )
प्रबलतम वेग से अपनी तीव्रता का अहसास करा रही थीं...
उसी तीव्रता से तुम भी मेरे ख्यालों में थीं...
सोच रहा हूँ काश, खयाल ही जीने का जरिया हुआ करते...
► जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 01 अक्टूबर 2010 )
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