कल रात सागर से उठती-गिरती लहरें...
प्रबलतम वेग से अपनी तीव्रता का अहसास करा रही थीं...
उसी तीव्रता से तुम भी मेरे ख्यालों में थीं...
सोच रहा हूँ काश, खयाल ही जीने का जरिया हुआ करते...
► जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 01 अक्टूबर 2010 )
प्रबलतम वेग से अपनी तीव्रता का अहसास करा रही थीं...
उसी तीव्रता से तुम भी मेरे ख्यालों में थीं...
सोच रहा हूँ काश, खयाल ही जीने का जरिया हुआ करते...
► जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 01 अक्टूबर 2010 )
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Comments
2 Responses to “कल रात सागर से :: ©”
nice thought ....
बहुत उम्दा ..............
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