मूँछों के झोंटे ::: ©
Thursday, 18 November 2010
- By Unknown
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कविता कोष
,
हास्य कवितायेँ
झबरीली मूंछों वाले लोगों को देख कर मेरा भी कटीली मूँछ रखने का मन हो आया.... अब आप देखें तो मेरी बेटी झलक की ओर से किसी मूंछों वाले के लिए कही गयी नयी बात क्या होगी...
मूँछों के झोंटे ::: ©
ताऊ जी ताऊ जी.....
मेले प्याले-प्याले ताऊ जी..
मेले छुई-मुई छे बचपन को..
लटका कल अपनी मूंछों में..
त्लिप्ती दिया कलो झोंटे देकल..
अनुपम छुन्दल हवादाल झूला..
सदृश्य अनुराग मेली खिखिलाहट..
देगी आनंद तुमको मेरे ताऊ जी..
कुम्हला ना जाये मेला बचपन..
बाँध छको तो बाँध लो मूंछों में..
अपने प्याल भले झूले का बंधन.. हा हा आहा.. ©
जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 18 November 2010 )
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Comments
8 Responses to “मूँछों के झोंटे ::: ©”
कुम्लाह ना जाये मेरा बचपन .....
बाँध सको तो बाँध लो मूंछों में....
बडी प्यारी और मासूम पंक्तियाँ .... सुंदर :)
प्याले प्याले ताउजी .... वाह मजेदार लगी कविता ......
वाह जोगेंद्र भाई बहुत खूब, बाल दिवस पर बच्चों के लिए मजेदार कविता लिखी, मूछें हमारी लगा दी. ताऊ की तरफ से बिटिया को ढेर सारा प्यार!
► मोनिका जी ,,,
कीमती टिपण्णी के लिए आभार दोस्त...
► चैतन्य जी ,,,
आपका आना मज़ेदार लगा दोस्त...
► शेखर भईया ,,,
आपकी मूंछों का झलक को इंतज़ार रहेगा... हा हा आहा... ;-)
प्याले प्याले ताउजी.. मुछों पर बाल कविता ... सुन्दर..
कभी जोगी भाई .. हमरे ब्लॉग में भी आईये और अनुग्रहित कीजिये अपने विचारों से.. भाई हो इस लिए अधिकार से कहूँगी फोलो भी कीजिये.. :))
► नूतन ,,,
यहाँ आने के लिए धन्यवाद ...
तुम्हारे ब्लॉग में पहले भी आकर गया था और चूँकि अपना ही घर है तो फिर से जब चाहे आ जाऊंगा ..... :)
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