काँटा और गुहार :: ©
Sunday, 3 October 2010
- By Unknown
Photography by : Jogendra Singh
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काँटा और गुहार :: © ( क्षणिका )
आसान नहीं है ...
पाँव से काँटा निकाल देना ...
हाथ बंधे हैं पीछे और ...
उसी ने बिखेरे थे यह कांटे ...
निकालने की जिससे ...
हमने करी गुहार है ...
►जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 02 अक्टूबर 2010 )
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Comments
8 Responses to “काँटा और गुहार :: ©”
bahut khoob ...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
► क्षितिजा जी ... धन्यवाद ..... :)
► वंदना जी , आपका शुक्रिया जो अपने मेरी रचनाओं को पसंद किया और चर्चामंच के बारे में जानकारी दी ...
मैंने कोशिश की अपने आपको चर्चामंच में खोजने की मगर नहीं कर पाया ... शुक्रगुज़ार रहूँगा अगर आप वह लिंक भी दे दें ... :)
यही चलन है ...अक्सर जिन पर विश्वास होता है कांटे वही चुभा देते हैं ..
रचना तो असरदार है,
मगर हमारे अन्दर एक विचार है,
आपका तो कॉपीराइट में लगता विश्वास है,
फूक फूक के कदम रखना,
लगता आपका प्रयास है,
फिर कौन मजाल कर गया काटें बिछाने की ?
करना मुस्किल ये स्वीकार है,
आशा है आप बुरा न मानेंगे,
टिपण्णी करना तो आखिर ,
हमारा अधिकार है...
लिखते रहिये,
हुने अगली रचना का इन्तजार है ...
हुने = हमें
माफ़ करिए , कभी कभी,
टाइप करने में,
हो जाता विकार है ...
सुन्दर अभिव्यक्ति
समय हो तो मेरा ब्लॉग देखें www.deepti09sharma.blogspot.com
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