अकेला रावण ही क्यूँ जलाया जाये ? ::: © (गंभीर सवालिया लेख)
► हिंदू धर्म में राम-रावण को अच्छाई एवं बुराई के प्रतीक के रूप में देखा जाता है ...मेरा सवाल है कि क्या सिर्फ इसीलिए रावण को बुरे रूप में देखा जाये कि उसने सीता हरण किया था ... ?
► मेरी समझ में उस स्थिति में राम और रावण दोनों ही का कोई महत्त्व नहीं है जब एक को केवल संहारक और दूसरे को दानव के रूप में देखा जाये ... गौर से देखा जाये तो रावण किसी रूप में राम से कम नहीं था ... ज्ञान, बुद्धि, बल, शौर्य, नाम, महत्त्व, और जाने किस किस बात में राम से कहीं आगे था ... उस समय के ग्रन्थ देखे जाएँ तो साबित होता है कि रावण से बड़ा वैज्ञानिक उस काल में कोई था ही नहीं ... जिस काल में लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए पैदल अथवा घोड़े जैसे माध्यमों की आवश्यकता होती थी तथा-समय रावण बड़ी सहन से अपने उड़न-खटोले में उड़ा करता था ... अभी कुछ समय पहले टीवी में देखा कि श्रीलंका में रामायण काल के साक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं ... इस तरह की बनावटें भी मिलीं जिनसे अंदेशा होता है कि कभी इन्हें आज की हवाई पट्टियों की तरह इस्तेमाल किया जाता होगा और उस जगह किसी भीषण अग्नि-कांड के भी साक्ष्य मिल रहे हैं जैसे हनुमान द्वारा लंका-दहन वाली बात यहाँ सच प्रतीत होती हो ... श्रीलंका में आज भी जमीन में जगह-जगह जमीन में बिखरे रूप में गोलियाँ मिलती हैं जिन्हें रावण ने हवाई सफर के दौरान मितली से बचने के लिए दिया था ... वैज्ञानिक विश्लेषणों से साबित होता है कि उन गोलियों में उच्चतम किस्म के औशधीय गुण मौजूद हैं ... इस तरह के साक्ष्य उस समय के भारत में या लेखों में ढूंढें नहीं मिलते ... श्रीलंका सरकार इन्हीं मिलते जा रहे साक्ष्यों की सहायता से अपने देश के ट्यूरिज्म को बढ़ावा देने की कोशिशों में भी लगी है ... हर हाल में उस दौर में रावण से श्रेष्ठ कोई और नज़र नहीं आता है ...
► यदि और भी ध्यान से देखा जाये तो सीता कांड को छोड़ कर उसके साथ कोई भी दुष्कर्म नहीं जुड़ा दिखाई पड़ता है ... खुद रामायण में ही लिखा है कि सीता ने उस समझ के स्थापित मानदंडों के अनुसार लक्ष्मण की बात नहीं मान कर रेखा लांघ कर अनजाने ही रावण का साथ ही दिया था तो रावण के साथ-साथ सीता भी क्या दोषी नहीं हो जाती है ... आज की स्थितियाँ पृथक हैं मगर तब की परिस्थितियों अथवा मानकों के अनुसार जो सही माना जाता था सीता ने वैसा नहीं किया ... रावण का कार्य असामाजिक था पर सीता के नारीत्व को आहत न करके उसने संयम का उद्धरण दिया ... तब रावण तो दोषी है पर क्या सीता को क्लीन चिट दी जा सकती है ... ? उसकी आसुरी शक्ति या कर्म की बात करें तो आर्यों में ही कौनसा ऐसा राजा था जो अपने राज्य-विस्तार के लिए दूसरे राजा और उसकी सेना-प्रजा को मारना नहीं चाहता था ... ? या उसके राज्य को हड़प करने पर आमादा नहीं था ... ?
► मेरी समझ कहती है आप अपने भीतर से दुष्कर्मों, दुह्सोचों को निकाल फेंको तो आपके भीतर का कथित रावण तो वैसे ही अधमरा हो जायेगा ... और जो बाकी रहेगा वह आपको राम से भी ऊंचे स्थान पर ले जाने वाला है ... क्योंकि राम के नाम पर भी कलंक है सीता से अग्नि-परीक्षा लेकर अपनाने का और उसके बाद भी एक बेवकूफ धोबी के आरोप भर लगाने मात्र से सीता को फिर से वनवास भोगने पर मजबूर कर दिया ... क्या राम को यहाँ रावण से कम दर्जा दिया नाना चाहिए जिसने अपनी पत्नी को जिसे वह सात फेरों के और साथ जन्मों के बंधन की कसमों के साथ अपने महल लाए थे , को अनजान जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर कर दिया ... ? बाद में यह भी सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं की कि एक कमजोर स्त्री जंगलों में किस तरह सुरक्षित रह पायेगी जबकि जंगली जानवर एवं असुरों सभी का खतरा बराबर मौजूद रहता था ... कैसे राम ने इतना बड़ा कर्म कर डाला जबकि रावण उसे उठाकर अपने घर ले जा रहा था और राम ने खुद ही सीता को दुनिया के थपेड़े खाने के लिए दुनिया के ही हवाले कर दिया ... ?
► किसके भरोसे राम ने सीता को अकेले निकाल दिया था और जब बेटे बड़े हुए तो उनका सर्टिफिकेट भी नहीं माँगा , सीधा अपना लिया ... क्यूँ ... ? इतने ही उच्च थे तो अंतर्ज्ञान कहाँ गया था जब पत्नी को निकाला था ... और अगर यह सही था तो नया ऐसा क्या हो गया जो सीता को बच्चों समेत फिर से अपना लिया ... ?
► अब मेरा सवाल है कि अगर जलना ही है तो क्यों सिर्फ रावण का पुतला जलाया जाता है ... ? राम जिसने अपनी पत्नी को अपने झूठे मर्यादा निर्वाण के लिए एक रावण नहीं वरन पूरे संसार के हवाले कर दिया था उस पर सवाल कब उठेगा ... ? सोचने का विषय है कि ग्रंथों के अनुसार ही हर बात को क्या केवल इसीलिए वैसा मान लिया जाये जैसा कि उनके रचयिता दिखाना चाहते थे अथवा हमें अपनी स्वयं की तार्किक विश्लेषण क्षमता का उपयोग भी कर लेना चाहिए ... ? सोचो ... क्या पता कुछ नया समझ आ जाये ... ?
जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 14 अक्टूबर 2010 )
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नोट :- मेरे लेख में मैंने कहीं भी रावण को क्लीन चैट नहीं दी है बल्कि उसके साथ साथ राम की गलतियों को भी कठघरे में लाने का प्रयास किया है ...
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Comments
16 Responses to “अकेला रावण ही क्यूँ जलाया जाये ? ::: ©”
हमें अपने स्वयं की विश्लेषण क्षमता का प्रयोग करना ही चाहिए.
जी ► सुब्रमण्यम सर धन्यवाद .....
sahab mujhe lagata hai ki aap ko punah (agar apne pahalle adhyan kiya hai to ) gambheerta se any grantho ko chhod hi do keval shree ram charit manas ka gahan adhyan karana chahiye ...!!
Ji Jai Shri Ram:---------is mein koi shak nahi kee ravan ek budhi maan tha kintu aap is cheez ko mat bhuliye usne aapni shakti ka galat upyog kiya tha aur har woh insaan apne bal ka paryog kissi galat kaam ke liye kare use uska fal bhugtna padta hai.....isee wajah se use bhi maut kaa samna karna pada, toh agar uska putla jalaya jaata hai to isme naa ravan ko chotta dikhaya gaya hai aur naa hee bhagwan shri ram ko ...balki marte samay aap ne dekha hoga kee shri ram ne Ravan ko aapne se bada manaa tha aur unhe ehsaas bhi dila diya tha kee woh bahut balshali aur gyani hai, Isse aap ye to jaan jayenge kee Shri ram bhagwaan ne bhi unka samaan kiya tha..........aur putla to khali ek parampra hai jismein naa koi bada hai naa chotta...........dhanyawaaad.
जोगी, आपका लेख चुनौती है .. विचारों की क्रांति का विस्फोट है .. इसे हम राम का अनादर न समझें , सिर्फ लेखक का अपना विश्लेषण मानें . यदि हम इन विचारों से सहमत नहीं भी हैं तो भी लेखक को मर्यादा में रहकर लिखने की स्वतंत्रता अवश्य दें . राम को यहाँ प्रभु रूप में नहीं व्यक्ति रूप में प्रस्तुत किया है और इसलिए राम में एक व्यक्ति के भावों -विकारों का आरोपण है. हाँ , एक बात अपनी भी रखना चाहेंगे - कि पुतले जलाने की रीत यदि न हो तो भी राम की कथा उतनी ही पवित्र रहेगी जितनी मानस में वर्णित है. शायद लेखक का मंतव्य भी यही रहा होगा.... राम पुरषोत्तम मर्यादा राम हैं .. पर कहीं यदि मर्यादा का अतिक्रमण समाज के कारण या आदर्श स्थापित करने के कारण हुआ भी है , तो लेखक को उसे इंगित करने की छूट मिलनी चाहिए .. जोगी जी, एक प्रश्न आपसे भी है कि क्या पुतले जलाने से इतिहास का नफा-नुकसान बदलेगा ?
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दोस्तों ...
रावण के सही और गलत वाले आपके सवाल पर देखा जाये तो शायद अपने मेरे लेख में ठीक से नहीं देखा हो कि वहाँ साफ़ लिखा है कि मैंने रावण के इस कृत्य को कतई सही नहीं ठहराया है ... मेरी बात रावण को गलत कहते हुए राम के किये फैसले पर आक्षेप करती है ...
हमारे समाज में जो घटना पुरानी हो जाती है तो उसके साथ कई मिथक जुड जाते हैं ... और कहीं यह बात भगवान-भक्ति और श्रृद्धा से जुडी हो तो आम तौर पर हम बिना ज्यादा सोचे किये गए सवालों को नकार देते हैं ... यहाँ भी देखा जाये तो रावण का कृत्य तो बातों की वजह से बदले वाला जान पड़ता है >>>
१.)) सीता स्वयंवर में रावण के परम शक्तिशाली होने के बावजूद उसका धनुष के विषय पर अपमानित हो जाना ...
२.)) सुर्पनखां द्वारा राम को किये गए प्रेम निवेदन को राम द्वारा ठुकराया जाना और फिर बात बढ़ जाने पर लक्ष्मण द्वारा उसके नाक-कान काट लेना भी बदले की भावना पोषित करने की एक मुख्य वजह बना ... अगर इतने ही मर्यादित थे तो चाहे सूर्पणखां का निवेदन सही होता या गलत, परन्तु उसकी यानि एक स्त्री के नाक-कान काटे जाना सर्वथा अमर्यादित व्यवहार था ...
अब बारी आती है रावण के ले जाये जाने के बाद पूरी रामायण कहती है कि रावण ने सीता के साथ हमेशा ही एक मर्यादित दूरी बनाये रखी थी ... किसी तरह के पुरुष-गुणीय दुर्व्यवहार का जिक्र पूरी रामायण में नहीं मिलता है ... अंत समय में जब युद्ध जीत लिया गया तब रामायण के ही अनुसार कथित रूप से असली सीता को अग्निदेव से प्राप्त कर उनकी परछाई से पीछा छुडा लिया गया था ... और यह बात उस दौर के सबसे बड़े महायुद्ध के बाद सारी सृष्टि (जिसमें देवता भी शामिल थे) के सामने करी गयी थी तो बाद में सीता के चरित्र पर ऊँगली उठाना कहाँ तक जायज़ था ... अब कही कोई यह कहना चाहे कि राम ने राजधर्म के नाते एक धोबी की याने कि जनता-जनार्दन की बात का मां रखने के सीता का परित्याग करने वाला कार्य किया था तो मेरा सवाल यह है कि
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क्या सीता उनकी पत्नी होने के साथ-२ उनकी प्रजा नहीं थी ... ?
और ऐसा क्या हो गया जिसकी वजह से सीता को अपने कि नगर में चाहे किनारे पर ही सही मगर एक घर तक उपलब्ध नहीं करा सके और जंगलों में भटकने के लिए छोड़ दिया ... ?
क्या राम नहीं जानते थे कि वन में भीषण राक्षस रहा करते थे और साथ ही जंगली जानवर भी ... ?
एक स्त्री को जोकि लड़ना भी नहीं जानती थी उसे वन में किसके भरोसे छोड़ दिया गया ... ?
मन उनको ऋषि वशिष्ठ मिल गए, पर अगर उनके बदले कुछ तामसी प्रवृत्ति के इंसान या दानव मिल जाते तो ... ?
क्या वह अबला अपनी अस्मत की रक्षा कर पाती ... ?
रावण एक था जो सीता को ले जाकर भी मर्यादा में था परन्तु राम ने तो केवल अपने झूठे राजधर्म के तुष्टिकरण के लिए उस मासूम अबला को जाने कितने रावणों के भरोसे छोड़ दिया ... तो है कोई ज़वाब दोस्तों इन सवालों का ... ?
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाना आसान है मगर सम्पूर्ण मर्यादा निभाना उससे हजारों गुणा अधिक कठिन है ...
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दोस्तों ...
रावण के सही और गलत वाले आपके सवाल पर देखा जाये तो शायद अपने मेरे लेख में ठीक से नहीं देखा हो कि वहाँ साफ़ लिखा है कि मैंने रावण के इस कृत्य को कतई सही नहीं ठहराया है ... मेरी बात रावण को गलत कहते हुए राम के किये फैसले पर आक्षेप करती है ...
हमारे समाज में जो घटना पुरानी हो जाती है तो उसके साथ कई मिथक जुड जाते हैं ... और कहीं यह बात भगवान-भक्ति और श्रृद्धा से जुडी हो तो आम तौर पर हम बिना ज्यादा सोचे किये गए सवालों को नकार देते हैं ... यहाँ भी देखा जाये तो रावण का कृत्य तो बातों की वजह से बदले वाला जान पड़ता है >>>
१.)) सीता स्वयंवर में रावण के परम शक्तिशाली होने के बावजूद उसका धनुष के विषय पर अपमानित हो जाना ...
२.)) सुर्पनखां द्वारा राम को किये गए प्रेम निवेदन को राम द्वारा ठुकराया जाना और फिर बात बढ़ जाने पर लक्ष्मण द्वारा उसके नाक-कान काट लेना भी बदले की भावना पोषित करने की एक मुख्य वजह बना ... अगर इतने ही मर्यादित थे तो चाहे सूर्पणखां का निवेदन सही होता या गलत, परन्तु उसकी यानि एक स्त्री के नाक-कान काटे जाना सर्वथा अमर्यादित व्यवहार था ...
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अब बारी आती है रावण के ले जाये जाने के बाद पूरी रामायण कहती है कि रावण ने सीता के साथ हमेशा ही एक मर्यादित दूरी बनाये रखी थी ... किसी तरह के पुरुष-गुणीय दुर्व्यवहार का जिक्र पूरी रामायण में नहीं मिलता है ... अंत समय में जब युद्ध जीत लिया गया तब रामायण के ही अनुसार कथित रूप से असली सीता को अग्निदेव से प्राप्त कर उनकी परछाई से पीछा छुडा लिया गया था ... और यह बात उस दौर के सबसे बड़े महायुद्ध के बाद सारी सृष्टि (जिसमें देवता भी शामिल थे) के सामने करी गयी थी तो बाद में सीता के चरित्र पर ऊँगली उठाना कहाँ तक जायज़ था ... अब कही कोई यह कहना चाहे कि राम ने राजधर्म के नाते एक धोबी की याने कि जनता-जनार्दन की बात का मां रखने के सीता का परित्याग करने वाला कार्य किया था तो मेरा सवाल यह है कि
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क्या सीता उनकी पत्नी होने के साथ-२ उनकी प्रजा नहीं थी ... ?
और ऐसा क्या हो गया जिसकी वजह से सीता को अपने कि नगर में चाहे किनारे पर ही सही मगर एक घर तक उपलब्ध नहीं करा सके और जंगलों में भटकने के लिए छोड़ दिया ... ?
क्या राम नहीं जानते थे कि वन में भीषण राक्षस रहा करते थे और साथ ही जंगली जानवर भी ... ?
एक स्त्री को जोकि लड़ना भी नहीं जानती थी उसे वन में किसके भरोसे छोड़ दिया गया ... ?
मन उनको ऋषि वशिष्ठ मिल गए, पर अगर उनके बदले कुछ तामसी प्रवृत्ति के इंसान या दानव मिल जाते तो ... ?
क्या वह अबला अपनी अस्मत की रक्षा कर पाती ... ?
रावण एक था जो सीता को ले जाकर भी मर्यादा में था परन्तु राम ने तो केवल अपने झूठे राजधर्म के तुष्टिकरण के लिए उस मासूम अबला को जाने कितने रावणों के भरोसे छोड़ दिया ... तो है कोई ज़वाब दोस्तों इन सवालों का ... ?
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाना आसान है मगर सम्पूर्ण मर्यादा निभाना उससे हजारों गुणा अधिक कठिन है ...
अब बारी आती है रावण के ले जाये जाने के बाद पूरी रामायण कहती है कि रावण ने सीता के साथ हमेशा ही एक मर्यादित दूरी बनाये रखी थी ... किसी तरह के पुरुष-गुणीय दुर्व्यवहार का जिक्र पूरी रामायण में नहीं मिलता है ... अंत समय में जब युद्ध जीत लिया गया तब रामायण के ही अनुसार कथित रूप से असली सीता को अग्निदेव से प्राप्त कर उनकी परछाई से पीछा छुडा लिया गया था ... और यह बात उस दौर के सबसे बड़े महायुद्ध के बाद सारी सृष्टि (जिसमें देवता भी शामिल थे) के सामने करी गयी थी तो बाद में सीता के चरित्र पर ऊँगली उठाना कहाँ तक जायज़ था ... अब कही कोई यह कहना चाहे कि राम ने राजधर्म के नाते एक धोबी की याने कि जनता-जनार्दन की बात का मां रखने के सीता का परित्याग करने वाला कार्य किया था तो मेरा सवाल यह है कि >>>
क्या सीता उनकी पत्नी होने के साथ-२ उनकी प्रजा नहीं थी ... ?
और ऐसा क्या हो गया जिसकी वजह से सीता को अपने कि नगर में चाहे किनारे पर ही सही मगर एक घर तक उपलब्ध नहीं करा सके और जंगलों में भटकने के लिए छोड़ दिया ... ?
क्या राम नहीं जानते थे कि वन में भीषण राक्षस रहा करते थे और साथ ही जंगली जानवर भी ... ?
एक स्त्री को जोकि लड़ना भी नहीं जानती थी उसे वन में किसके भरोसे छोड़ दिया गया ... ?
मन उनको ऋषि वशिष्ठ मिल गए, पर अगर उनके बदले कुछ तामसी प्रवृत्ति के इंसान या दानव मिल जाते तो ... ?
क्या वह अबला अपनी अस्मत की रक्षा कर पाती ... ?
रावण एक था जो सीता को ले जाकर भी मर्यादा में था परन्तु राम ने तो केवल अपने झूठे राजधर्म के तुष्टिकरण के लिए उस मासूम अबला को जाने कितने रावणों के भरोसे छोड़ दिया ... तो है कोई ज़वाब दोस्तों इन सवालों का ... ?
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाना आसान है मगर सम्पूर्ण मर्यादा निभाना उससे हजारों गुणा अधिक कठिन है ...
मेरे फेसबुक के इनबॉक्स में इसी पोस्ट को लेकर एक मित्र ने कुछ भेजा है ... मुझे लगा की आपको दिखा दूँ ... सो आप भी दिखिए मेरी एक महिला मित्र ने क्या भेजा है ...
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17 October at 16:56 Report
saara discussion padha hamne. achchha hai .... main mudda ram ki kamiyon ko dikhana hai par sabhi ravan ki baat adhik kar rahe hain. ek baat aur .. ram praja hitkaari the , to dashrath ki ek bekaar si pratigya ke karan wah saari ayodhya chhodkar kyon chale gaye... 14 varsh ka vanvaas ek pita aur kaikayi ki jid ke karan ...tab ayodhya ki praja par jo beeti , use ram ne kyon nahin samjha .. ek pita ke liye poori praja ka tyag aur baad mein poori praja ke liye seeta ka tyag kya virodhabhas ko janm nahin deta . yadi ram pitr bhakt ho skate hain to wahi maryada wah prem roop mein seeta ke saath kyon nahin nibha paaye? 14 varsh ke vanvaas se hamen aapati nahin hai , isliye kya seeta ke nishkasan se bhi aapatti nahin hai ....
mere vichaar me to surpnakha ki naak kaatne ka matlab hai uska balaatkaar. Ravan ne badleme jo kiya wo theek hi tha. agar Hanuman aur Vibhishan na hote to Ram me itna dam nahi tha ki Ravan ko marsake. Hamara samaj chadhte suraj ko pranaam karta hai . Isi tarah aaj ke jamane ke mahachor pooje jate hai aur unhe gaddi par baithaya jata hai.
YE Desh Aaj AAp Sabhi Logo Ki Vajah Se piche hai kyonki aap Baal ki Khal Nikalne mein Mahir hain. Jo humare grantho mein likha hai hum use galat nahi thaera sakte. aap Rishto ko kyon mmnte ho kyonki humare bujurg use bana gaye. isliye RAM to Ram hi rahenge or Raawan...........
मेरे फेसबुक के इनबॉक्स में इसी पोस्ट को लेकर एक मित्र ने कुछ भेजा है ... मुझे लगा की आपको दिखा दूँ ... सो आप भी दिखिए मेरी एक महिला मित्र ने क्या भेजा है ...
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17 October at 17:37 Report
जो बातें हमें भेदती हैं , वही हमने लिख दी थी . सीता के स्थान पर खुद को रखते हैं तो बहुत क्षोभ होता है. यदि हम उस ज़माने की बात करते भी हैं , और ये कहकर न्याय संगत ठहराते हैं कि तब की सामजिक व्यवस्था के अनुरूप था सब .. तो एक बात मन को मथती है कि जो अहिल्या का उद्धारक हो सका वह अपनी पत्नी को महज जन हित के लिए क्यों त्याग गया.
अहिल्या के पति ने उसे इसलिए त्यागा क्योंकि इंद्र ने छल से उनके नारीत्व का अपमान किया ... पर राम इस दुःख को गौतम ऋषि से अधिक समझ पाए ... किन्तु यही भावुक राम सीता के प्रति क्यों कठोर हो गए ? गौतम और राम में क्या अंतर रहा तब ? सीता को अपना उद्धार स्वयं करना पड़ा .. भूमिजा बनकर ... बस राम यहीं .. इसी पक्ष में कमज़ोर नज़र आते हैं .
AAP ne likha ki ravan main koi bura gun nahi tha lagta hai aap ne ramayan dekha hi nahi aur to aur dekha bhi ho to aap ki man ki sthiti ravan jaisi hi hogi ravan bachpan se hi mandir tod deta tha yag kund tod deta tha apne bhai vibhishan ki patni ko apne kabje main le liya tha aur bhi bahout durgun hai haan agar aap shri ramchandra ji ki baat kar rahe hai to main bata du agar agni pariksh na hoti to aaj kai log mata sita ke charitra par sawal uthathe jo aaj claear ho gaya hai agar unhone apne se alag nahi karte to lav aur kush main se kush na hote ye sab maya hai singh ji
aur aap ne kaha ki mata sita ko aela choda ab to such main lagta hai ki aap se bada andha aur bevkoof koi nahi jo bina kuch samjhe likhne se matlab rakhe aur doosre religion ke log majak banaye bhai sahab mata sita maharshi valmiki ke sath thi ramayan padho aur atpatang likhna band karo nahi kar sakte to andhi behri congress sarkar ke khilaf kuch likho aur agar mere comment se koi problem hai to mjha67@ yahoo.com par mujh se baat karna haan facebook par bhi mahesh jha naam se hu
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