खयाल जिंदा रहे तेरा ©
Saturday, 6 November 2010
- By Unknown
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कविता कोष
,
चित्र बोलता है
खयाल जिंदा रहे तेरा..
जिंदगी के पिघलने तक..
और मैं रहूँ आगोश में तेरे..
बन महकती साँसें तेरी..
तुझे पिघलाते हुए अब..
पिघल जाना मुकद्दर है..
बह गया देखो तरल बनकर..
अनजान अनदेखे नये..
ख्वाहिशों के सफर पर..
तुझे छोड़कर तुझे ढूँढने..
खामोश पथ का राही बन..
बेसाख्ता ही दूर तक..
निकल आया हूँ मैं..
सुनसान वीराने में तुझे पाना..
तेरी वीणा के तारों को..
नए सिरे से झंकृत..
कर पाना मुमकिन नहीं..
तुझसे दूर, तेरे पास भी..
रह पाना मुमकिन नहीं..
तुझे पिघलाते हुए अब..
पिघल जाना मुकद्दर है..
बह गया देखो तरल बनकर..
खयाल जिंदा रहे तेरा..
जिंदगी के पिघलने तक..
और मैं रहूँ आगोश में तेरे..
बन महकती साँसें तेरी..
जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 06 नवंबर 2010 ) ©
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Comments
6 Responses to “खयाल जिंदा रहे तेरा ©”
जोगेंद्र जी , कविता पीड़ा बेबसी की पगडंडियों से गुज़रती है . वीणा के तारों को झंकृत न करने का अवसाद , न दूर और न पास रहने की मजबूरी .. पर फिर भी ख्याल को जिंदा बनाये रखने का भाव कविता में आशा की तरलता का संचार करता है , जों अंतत: पिघलकर एकमेक हो जाना चाहती है.
हर ख्याल में जिंदा है तू
आस से ही सांस चल रही है
बहुत उम्दा जोगी जी
► अपर्णा जी ,,,
मेरी कविता को इतने गहरे से समझने के लिए ह्रदय से आभार.....
► प्रति भईया ,,,
सादर धन्यवाद........
bahut achchha likha hai aapne..............shabda shabda ati sundar
► आना जी ,,, खूबसूरत सी टिपण्णी के लिए शुक्रिया दोस्त....
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