हम कहाँ हैं ? : ( संस्मरण )


हम कहाँ हैं ? : ( संस्मरण )Copyright © 2009-2011

नोट : नीचे मौजूद वक्तव्य मेरी अपनी आँखों देखी सच्ची घटना है जो कुछ साल पहले घटित हुई थी...
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●          रात के अँधेरों में बरसात का जोर चरम पर था ! बारह बजकर पन्द्रह मिनट पर दादर कबूतरखाने के पर बने बस स्टॉप की शेड तले अपने को छिपाने के उद्देश्य से भाग कर मैंने अपनी जगह पक्की की ! पूछने पर पता चला सेंचुरी बाज़ार, वर्ली के लिए आखिरी बस एक बजकर पैंतालीस मिनट के आस-पास मिलेगी ! कुछ मिनट बीत जाने पर बारिश का जोर धीमा पड़ा और चारों तरफ से आ रही फुहारों से कुछ रहत मिली ! पीछे राम-हनुमान मंदिर से जुड़े नुक्कड़ पर पान के केबिन से देवानंद का एक गीत "ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ, सुन जा दिल की दास्ताँ.." अपने मद्धिम स्वर में आयद हो रहा था ! मुंबई में बारिश का मौसम सबसे कठिन है कि यहाँ एक बार ठीक से जो बारिस शुरू हुई तो कम से कम चार माह तक अपने होने का अहसास करवाती रहती है ! उस पर भी यहाँ के लोगों का जीवट देखिये इस झंझावात के भी आदी हो चुकते हैं ! कहते हैं खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है तो हम ही कौनसे छूट जाने वाले थे, परिणामस्वरूप इतनी रात गए औरों संग मैं भी वहीं उस छोटी सी दबती सिमटती भीड़ का हिस्सा बना खड़ा था !

●          रात में सड़क को खाली जान सामने से अचानक एक नयी उमर के लड़के ने तेज़ी से सड़क पार करने की कोशिश में दौड लगा दी ! परन्तु नसीब का मारा यह नहीं देख पाया कि अन्य दिशा से उसी खालीपन का फायदा उठाती एक टैक्सी भी अपने वेग से चली आ रही थी ! समय की मार कहिये या दुखद संयोग परन्तु इन दोनों के मिलन का होना तय हो गया था ! धडाsssक.....!! जोर की आवाज़ ने कानों पर प्रहार किया ! लेकिन यह क्या, एक साथ तीन-२ आवाजें...? दरअसल टकराते ही उछलकर लड़का कार के बोनट पर जा गिरा और फिर उसी झौंक में दरककर नीचे जमीन पर ! एक ही समय तीन चोट और चौथी चोट ने बेचारे का तिया पाँचा ही कर डाला ! जब वह नीचे सड़क पर पहुंचा तो कार का अगला पहिया उसके बांये पाँव की हड्डी से खेल चुका था ! गीली फिसलन भरी सड़क पर रक्त के गहरे रंग की एक धार बह निकली जिसने कुछ ही समय में पहले से मौजूद गीलेपन से गठजोड़ कर नया फैलाव ले किया और यह दायरा फ़ैलकर अब काफी बड़ा रूप धारण कर चुका था !

●          रात के सन्नाटे को भंग करती बूंदों के अविरल टप-टप गिरने की की ध्वनियाँ जिन्हें बंद दुकानं के छज्जों पर मौजूद तिरपाल के संगम ने बेहद भयानक सा रूप दे दिया था ! इधर हम सब अवाक्...! सब इतना जल्दी हुआ कि क्या कहूँ ! मैंने कार के निकल भागने से पहले ही उसका नंबर नोट कर लिया और लगभग भागते हुए उस युवा के जमीन पर पड़े शरीर के पास जा पहुंचा जो अब झटके खाने लगा था ! एक पल को लगा कि उसका काम हो लिया, परन्तु फिर आस छोडना भी बेहूदगी होती ! इसी बीच पुलिस की बड़ी वैन वहाँ आ निकली ! जहाँ एक ओर बाकी लोग गलबतियों में व्यस्त थे वहीं मैंने अपना हाथ दे वैन को रुकने का इशारा दिया ! ज्यादा नहीं केवल एक ड्राईवर ही था उसमें, और नालायक इतना कि रुकने के बजाय सीधे ही पतली गली को हो लिया ! थोड़ी सी देर में दूसरी बार मेरे अवाक् रह जाने की बारी थी, जिस स्थिति में था उसी में मुँह फाड़े खड़ा रह गया ! कैसे एक सरकारी आदमी वह भी पुलिस डिपार्टमेंट का आदमी अपनी पूरी खाली वैन लेकर कल्टी हो लिया ! जिनके कन्धों पर देश की आतंरिक व्यवस्था टिकी हुई हो उससे ऐसी उम्मीद नहीं कर पाया था सो अचंभित होना स्वाभाविक ही था ! कुछ ही मिनटों में यह सब भी निबट गया ! अब फिर सुनी सड़क मुझे मुँह चिढाती अपने नहाने-ढोने के काम में व्यस्त हो गयी ! आस-पास नज़रें एवं दिमाग दौडाने पर समझ आया कि अब तक मैं जिन्हें अपने साथ समझ रहा था उनकी हैसियत असल में किन्हीं तमाशबीनों से अधिक नहीं थी !

● उन्हीं तमाशबीनों में एक से पुलिस कंट्रोल रूम का नंबर मिल गया ! फोन घुमाने पर जो हुआ वह पहले से भी अधिक परेशानीबख्श रहा ! फोन पर उपलब्ध लोगों ने लड़के के बारे में जानना ना चाहकर मेरी ही जन्मकुंडली निकलवाना शुरू कर दिया ! जिस अंदाज़ में वे मुझसे सवाल पूछ रहे थे उससे तो यही जाहिर हो रहा था कि अब मुझे ही बंद किया जाने वाला हो ! बड़ी मुश्किल से लोकेशन समझकर जान छुड़ाई ! यहाँ बताने लायक बात यह भी बनती है कि टक्कर मरने वाली टैक्सी का नंबर नोट करने में काला-चौकी पुलिस ने कोई खास रूचि नहीं दिखाई जबकि मैं बार-बार इस बात को दोहराए जा रहा था ! साथ ही पुलिस वैन का नंबर बोलने लायक माहौल मुझे मुहैय्या ही नहीं हुआ ! शरीफ एवं सीधा आदमी होने के कारण इस सब से दूर भागना ही उचित जन पड़ा, सो दूर रहकर लड़के के पुलिस द्वारा उठाये जाने का कार्य अन्जामित होते देख वर्ली तक चुपचाप से पैदल ही खिसक आया !

● यहाँ मेरा सवाल बनता है कि क्या एक जिम्मेदार नागरिक होने की सजा खुद को फंसवाकर ही मिलती है ? या वह टैक्सीवाला अधिक अच्छी स्थिति में है जिसने रुकना तक गंवारा नहीं किया जबकि वह दुर्घटना का अहम किरदार था ? या वह पुलिस वैन का ड्राईवर अधिक समझदार निकला जो सरपट खरगोश बन बैठा ? या वे लोग उचित थे जिन्होंने अपनी जुबानों का इस्तेमाल करने जितनी बड़ी महान जहमत उठाई ? या मैं ठीक रहा जिसने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की आधी-अधूरी ही कोशिश की ? या फिर कुछ और ही है जो होना चाहिए पर नहीं होता ? क्या सच में हमारे मन से इंसानियत का इतना अधिक नाश हो चुका है कि हम अपने होने का ही फायदा नहीं उठा पाते हैं और ना ही किसी और के लिए अपना इस्तेमाल कर पाते हैं ? क्या वाकई इंसानियत शब्द को शब्दकोष से निकाले जाने का सही समय आ चुका है.....?

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (06-03-2011)
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