मिटटी सा भंगुर तन.. © 2011
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मिटटी सा भंगुर तन, तन सा भंगुर मन,
मन में बसे सब हैं, कैसे पार पड़े.....? - जोगेन्द्र सिंह (18-01-2011)
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नज़रों में बसा रखा है तुमने संसार , एक झपाके में लोप हो गया...
क्यूँ ना उठा देती तुम इन आँखों को , कि इनमें मेरा है संसार बसा... - जोगेन्द्र सिंह (18-01-2011)
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Comments
2 Responses to “मिटटी सा भंगुर तन.. © 2011”
मिटटी सा भंगुर तन, तन सा भंगुर मन,
मन में बसे सब हैं, कैसे पार पड़े....
बहुत सुन्दर
आभार
शुभ कामनाएं
CM इंडिया ,,, थैंक्स दोस्त...... :)
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