सभ्य हम कहाँ हैं...?


सभ्य हम कहाँ हैं...?
बारिश में भीगते कुत्ते या इंसान ,
भूख से तडपते गरीब ,
सर्दी में ठिठुरते बेबस पड़े लोग ,
सड़क किनारे मरता बीमार और एक पागल ,
कहाँ दिखते हैं हमें......
सभ्य तो छोडो हम इंसान ही कहाँ हैं......?
.........................................................जोगी :(

.
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Comments

4 Responses to “सभ्य हम कहाँ हैं...?”

Barthwal said...
6 January 2011 at 10:53 pm

कुछ शब्द परिभाषाओ तक ही सीमित है... जय हो

Kiran Arya said...
7 January 2011 at 2:12 pm

हा जोगी सही कहा आपने आज का इंसान अपने ही दायरॉ अपने ही स्वार्थो की पूर्ति मे कुछ इस तरह से लिप्त है की उसे दूसरो की पीड़ा दुख दिखाई ही नही देता है, सभ्य छोड़ो आज तो इंसान भी कहाँ रहे है हम.......... अगर हम किसी के दुख को समझकर किसी एक चेहरे पर भी मुस्कान ला सके तो यह जीवन सार्थक है...........)

Unknown said...
7 January 2011 at 9:43 pm

धन्यवाद प्रति भईया........

Unknown said...
7 January 2011 at 9:44 pm

किरण * इसी का नाम ही तो जीवन है.......

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