शेर या गीदड (एक व्यथा)
Friday, 17 September 2010
- By Unknown
Labels:
कविता कोष
,
हास्य कवितायेँ
आज कौन शेर है ... ?
सब हैं गीदड ...और ...
शेरनियों से शादी रचाए बैठे हैं ...
वो गुर्राया करती हैं ...
हम दुबके पड़े रहते हैं ...
घर से निकल कर कैसे कह दूँ ?
चौका-चूल्हा, बर्तन-भांडे ...
थे कभी जो उनके हिस्से ...
आते हैं अब मेरे हिस्से ...
कोमला, निर्मला, सौंदर्या ...
अबला, पीड़ित, कुचली, प्रताड़ित ...
कितने ही उपमान पाए इन्होने ...
सभी जानते हैं असलियत इनकी ...
कौन चाहता लाँघ द्वार को ...
हो जाये यह चर्चा आम ...
देख-देख सूरत इनकी ...
होते थे पुलकित कभी ...
सूरत वही पर सीरत नयी है ...
मन वही इधर भी है ...
नासपीटी बस दहशत नयी है ...
जो होते थे कम्पायमान कभी ...
कम्पित-भूकम्पित कर डाला उन्होंने ...
कौन जाने अब क्या हो कल ...
बन छिद्रान्वेषक ...
अपनी नज़रों से ...
गुजारेंगी हर पल ...
गुजर गया जो ...
वह रूप बदल फिर आयेगा ...
पीटते-पीटते, पिटने लगे हैं ...
है यह समय का पहिया भईया ...
इसके वार से बचा न कोई ...
बदल रहा यह दौर है ...
छोड़ सजातीय विजातीय संग हैं ...
बोलो भईया शेर-शेरनी कब होवेंगे संग ?
► ...जोगेन्द्र सिंह ... Jogendra Singh ... ( 17 सितम्बर 2010 )
.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Comments
2 Responses to “शेर या गीदड (एक व्यथा)”
जोग भाई बहुत खूब्.... माज़रा कुछ कुछ समझ मे आ रहा है.... आप सही सलामत है ना ...मज़ा आया
जोगिन्दर भाई बहुत बढ़िया शब्दों में ढाला है है आपने विषय को. आनंद आया !
Post a Comment
Note : अपनी प्रतिक्रिया देते समय कृपया संयमित भाषा का इस्तेमाल करे।
▬● (my business sites..)
● [Su-j Health (Acupressure Health)] ► http://web-acu.com/
● [Su-j Health (Acupressure Health)] ► http://acu5.weebly.com/
.