सभ्य हम कहाँ हैं...?
Thursday, 6 January 2011
- By Unknown
सभ्य हम कहाँ हैं...?
बारिश में भीगते कुत्ते या इंसान ,
भूख से तडपते गरीब ,
सर्दी में ठिठुरते बेबस पड़े लोग ,
सड़क किनारे मरता बीमार और एक पागल ,
कहाँ दिखते हैं हमें......
सभ्य तो छोडो हम इंसान ही कहाँ हैं......?
.........................................................जोगी :(
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Comments
4 Responses to “सभ्य हम कहाँ हैं...?”
कुछ शब्द परिभाषाओ तक ही सीमित है... जय हो
हा जोगी सही कहा आपने आज का इंसान अपने ही दायरॉ अपने ही स्वार्थो की पूर्ति मे कुछ इस तरह से लिप्त है की उसे दूसरो की पीड़ा दुख दिखाई ही नही देता है, सभ्य छोड़ो आज तो इंसान भी कहाँ रहे है हम.......... अगर हम किसी के दुख को समझकर किसी एक चेहरे पर भी मुस्कान ला सके तो यह जीवन सार्थक है...........)
धन्यवाद प्रति भईया........
किरण * इसी का नाम ही तो जीवन है.......
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