मनोज जी.....!!!!!
मृत्यु से स्नेह रखने वाले
हे मनोज जी..
मृत्यु तो ठगिनी है
न करो उससे प्रेम तुम इतना
हो न जाये
कहीं वरण तुम्हारा
तुम सोचते रह जाओगे
रह जाओगे पीछे अकेले
चल देगी ठगिनी
छोड़ तुम्हें
करने वरण किसी और का
बंधे प्रेम पाश में तुम
कैसे करोगे सफ़र तुम्हारा
सम्मोहन से असम्मोहन तक
_____जोगेंद्र सिंह ( 19 मई 2010_08:46 pm )
(( मेरे एक परम मित्र, मित्र क्या बड़े भाई एवं पथ प्रदर्शक भी हैं वे मेरे लिए ! उन्होंने मृत्यु से आसक्ति दिखाती एक बेहद सुन्दर कविता की रचना की थी ! जब टिपण्णी करने गया तो जाने क्यूँ कुछ हास्य सा मन में उत्पन्न हुआ और जो बात निकली वही है यह ऊपर वाली रचना ! ))
मनोज जी की लिखी कविता नीचे लिखी है ◊▬►►
ए शाश्वत सुंदरी 'मृत्यु'
तुम्हारा रूप लावण्य अप्रतिम
कभी श्वेत कभी पीत तो कभी रक्तिम..
नहीं कर पाया कोई शब्दों में वर्णन
तुमने कितनों का किया वरण
कभी प्रेम तो कभी हरण
फिर क्यूँ हूँ मैं वंचित
हो मोहित मैं
खड़ा यमद्वार
करने तुम्हारा साक्षात्कार ...
तुम प्रिय प्रेयसी हो..
यमपाश में बँध करना है तुम्हें अंगीकार...
मैने किया तुम्हें स्वीकार
फिर क्यूँ हैं तुम्हारा इनकार...
_____मनोज जोशी
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