सजा




सजा क्या देनी है उसे..
जो दिल तोड़ गया..
कर दो उसे उसे माफ़..
कि सालता रहे जीवन भर..
ग़म उसे इस माफ़ी का भी..



_____जोगेंद्र सिंह "Jogendra Singh" ( 17 जून 2010_09:10 am )



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Comments

7 Responses to “सजा”

Barthwal said...
17 June 2010 at 10:02 am

सज़ा तो सज़ा है अब कोई भी हो किसी भी रुप मे..

Amit Gupta said...
17 June 2010 at 10:03 am

very nice Brother

Unknown said...
17 June 2010 at 10:12 am

@ प्रतिबिम्ब जी.. आप का आना हमेशा ही कुछ अच्छा करने को प्रेरित करता है.. धन्यवाद..
@ मुस्कराहट से फैले ओंठ हमेशा अच्छे लगते हैं छोटे (Amit).. सो ख़ास तुम्हारे लिए एक लम्बी सी स्माइल..

21 June 2010 at 1:33 pm

प्रश्न हैं बहुतेरे....सज़ा....बहुत अच्छी कवितायें लगी जोगेन्दर जी.हां ...आंचल की लडाई... अप्ने अलग रंग की कविता है,क्या सोचते हैं बेटे आर्टीकल कमाल का लगाया....मन को छू गया सब कुछ....शुक्रिया.

Unknown said...
2 September 2010 at 3:10 pm

@ राजेश जी , आपका लिखना मेरे लिए प्रेरणावर्धन का कार्य करता है ... धन्यवाद भाई ... :)

Unknown said...
2 September 2010 at 3:11 pm

thanx @ स्वेता ... :)

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