साहित्य चोर
Friday, 25 June 2010
- By Unknown
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उभरती सोच
एक प्रतिक्रिया :-
साहित्य चोरों की कोई विशेष जामत नहीं होती.. यत्र-तत्र-सर्वत्र वे मौजूद रहते हैं.. थोथी पाना ही उनका लक्ष्य होता है..वे यह भी भूल जाते हैं कि पकडे जाने पर उनकी अपनी रचनाएँ भी संदेह के घेरे में आ जाने वाली हैं.. तब उनकी अपनी मेहनत भी मिटटी हो जानी है.. (..जोगी..)
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Comments
2 Responses to “साहित्य चोर”
very nice
smile @ Amit.. :)
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