आम आदम
Friday, 20 August 2010
- By Unknown
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उभरती सोच
@ एक विचार @
अपने और समाज के बीच पिस जाता है आम आदम.. न अपने लिए ही कुछ कर पाता है और न समाज ही को कुछ दे पाता है.. यही है बहुलता से उपलब्ध इंसान की कड़वी सच्चाई.. जो इसके विपरीत हैं वे संख्या में ज़रा से हैं.. उनके होने न होने से कोई बड़ा फर्क नहीं आ जाता..
(..जोगेन्द्र सिंह..)
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Comments
2 Responses to “आम आदम”
जोगिन्दर जी, अच्छी ट्विट किया है आपने.
एक सोच दी........
@ दीपक जी, आपका आभार...
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