आजकल खयाल
Wednesday, 25 August 2010
- By Unknown
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कविता कोष
आजकल खयाल ..
किसी नाव से पानियों पर बहते हैं ..
न रह पाते पानी पर तब भी ..
कुछ देर विचर लहरों पर ..
गुम फिर पानी में हो जाते हैं ..
चैन वहाँ भी अब न पाते हैं ..
लेते थाती गहरे पानी की हैं ..
डूब-ऊब गहरे रहस्यों में ..
खोज लाते हैं नित नए अर्थ जहाँ के ..
न था मालूम होगा गहरे में गहरा ..
यह सोच समंदर ..
आजकल खयाल ..
किसी नाव से पानियों पर बहते हैं ..
कुछ देर विचर लहर पर ..
गुम फिर पानी में हो जाते हैं ..
_____जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 25 अगस्त 2010 )
(इस कविता की प्रथम दो पंक्तियाँ मेरे मित्र सोहन से प्रेरणा स्वरुप ली गयी हैं ... )
Photography by : Jogendra Singh (10 July 2010 )
at keshav Srishti , Bhainder ( Mumbai )
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Comments
3 Responses to “आजकल खयाल”
बहुत सुन्दर| ख्यालों को बांधा नहीं जा सकता है|
खूबसूरत है सच में.. !
खूबसूरत है.. सच में !
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