सदियों से चाँद प्रताड़ित है
कौन समझेगा दर्द चाँद का
प्रेमी-जन कहते आसक्ति में
चाँद में दाग है तुझमें नहीं
अनगिनत बातें जीवन में
इक-इक जोड़ा कह जाता
नहीं बोला चाँद कभी भी
तुम नश्वर और हूँ मैं शाश्वत
दाग है मेरा.. काला टीका
भाल गाल पर रौशन रहता
देख उसे तुम तुलना करते
चाँद खड़ा मुस्काता तुम पर
सुन्दर चाँद हुआ हम सब से
जो ना होता क्यूँ होती तुलना
हर दिन आता फ़ैलाने जग पर
शीतलता अपनी किरणों की..
समरसता एकरसता से चांदनी
घूम रही ढूँढ़ रही.. चकोर को
सदियों से.. जो उसका प्रेमी है
कौन क्या कह रहा.. उसे क्या
काम है उसका चाँद देखना
क्या आकर कोई समझेगा ?
पीड़ा चाँद और चकोर की..
होगा मिलन दोनों का कैसे ?
सदियों से चाँद.. अकेला है
सदियों से चाँद प्रताड़ित है
कौन समझेगा दर्द चाँद का !!
___जोगेंद्र सिंह ( 05 मई 2010_11:12pm )
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Comments
3 Responses to “पीड़ा चाँद की !!”
It is a wonderful poem, covering various aspects of life.
jee ◊▬►► Aparna ji... thanx to you...
जोगेंद्र जी,
सार्थक कविता है जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है,बधाई.
ऐसे ही आप अच्छी रचनाएं हम मित्रों से बाँटते रहें, यही शुभकामना है.
-priyanath pathak
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