चाहे तुम किनारा या होवो मझधार
बारम्बार निरंतर उद्धत हो बढ़ जाता
मिलने को होता अतुरित मन मोरा
आता मन तेरी ओर बन जीवन आस
मध्य पड़ा तेरे धारे तू कर आलिंगन
या कर ले समाहित अपने आँचल में
हर बात तुझसे मिली इक नेमत होगी
दे देना तुम नाम उसे जीवन या मृत्यु
_____जोगेंद्र सिंह ( 06 मई 2010_04:06pm)
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Comments
One response to “ऊहापोह..”
It is like finding life in Death! The poem reflects the positive tone and shares the same positivity with the readers.
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