लोभ माया मोह छू न पायौ
कैसौ अनूठो देखो सर्प प्रेम
बारी अब हम लोगन की है
मानुष को पानी जे शिच्छा है
__________जोगेंद्र सिंह
( 08 मई 2010_04:20pm )
( मनुष्य का लोभ नहीं छूटा है अब तक ! जिस तरह से सर्प का प्रेम इन सब से अछूता है, उससे सीखने की बारी हम लोगों की है कि सर्प से निश्छल-समर्पित प्रेम मानव सीखे!)
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Comments
4 Responses to “सर्प प्रेम..”
Four lines... and the meaning goes beyond the horizon!
Keep it up !
yes Aparna ji.. you r absolutely right...
hope somday the human being olso touch the heights of their love....... gud one Jogi jee....
thanx ◊▬►► Aparna ji...
thanx ◊▬►► Mradula...
thanx ◊▬►► Julie...
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