बंद पलकों पीछे दीठ रहा
कितना विहंगम..
दृश्य इस जीवन वृत्त का
कुछ छोटे पौधों बीच घिरे
दो बड़े वृक्षों से आच्छादित स्थल
पानी पीते कुछ छात्र-छात्राएं
धवल वस्त्रों में दमकते
दिन भर की उछलकूद
गुरुज़न की डांट
इक दिन.. मध्य उन्ही के
पहली बार जब तुम नज़र आयी
यकीन न हुआ जब..
वे दो काली सुर्ख गहरी आँखें तुम्हारी
मेरी ओर ही आकृष्ट थीं
पर शायद घटना की पुनरावृत्ति
उसके होने का यकीन दिला ही देती है
पहले तो नहीं पर अब शायद
पुनरावृत्तियाँ मेरे हिस्से में भी आ गिरीं
जाने कब दूसरी पंक्ति का छात्र पहुँच गया
आखिरी पंक्ति की खिड़की के करीब
जहाँ से सहज ही उपलब्ध होता
अँखियों को यह विहंगम दृश्य
सकून नज़रों का बन..तुम..
मचलती रही स्वप्न-लोक की दुनिया में
पलक झपकते आना-जाना तुम्हारा
बस नींद-ओ-हवास का फर्क है
इसी से लगती नींद प्यारी
दिखते बाकी सब हवास गलीज़ हैं
मार-पीट उछल-कूद सब होता
पर तुमसे कभी कुछ कहना न होता
बहरहाल निहारना बदस्तूर जारी रहा
एक शाम आ रही सामने से तुम
धड़कन बढ़ी होश ग़ुम थे मेरे
कोशिशें जारी रहीं.. कुछ कह देने की
पर कभी हो न पाया
कभी इससे कभी उससे कह मदद चाही
पाया अजनबी तौर अपनाकर,
अंजाम भी कुछ अजनबी सा ही
जाने क्या छुपाने की कोशिश में
कुछ भी ना छुपा पाया
बदल गयी पाठशाला और शहर भी
दर्शन भी अब दुर्लभ थे
पीड़ा अंतर्मन की जाकर दर्शाऊं किसे
फिर-फिर आता उस शहर में
इस बहाने तो कभी उस बहाने
व्यतीत हुए सप्त वर्ष बिन कहे इक शब्द
समेट साहस एक दिन
सोचा.. कह ही डालूँ तुम्हें
हा हन्त..!! यह क्या..!!
अब तुम भी न थीं उस शहर में
कहाँ जाऊं कैसे ढूँढूं तुम्हें
ह्रदय उछल गले तक आया
तीव्र साँसें कंठ अवरुद्ध
नयन तर थे मेरे
सूने तारे घूम रहे नयनों के
इस ओर कभी उस ओर
बेमकसद भटक रहा चहुँ ओर
जाने कितने जतन कर जान लिया
पहुँच गया फिर एक नए शहर
कैसे कहता जो अब तक न कह सका
आ रही आड़े..
सप्त वर्षीय मानसिक जद्दोज़हद
साहस सहेज कह डाला
बाट जोह रहा वहाँ वज्राघात
ये कौनसी बात जानी जोधपुर में
बना दिया गया अमानत तुम्हें
किसी और के लिये
लोहे की सलाखों का द्वार
लगा जैसे कैदखाना हो
मेरी आहत आरजुओं का
द्वार पीछे से झाँकते चेहरे
लगने लगे दर्शक सर्कस के
तकते मुँह मुझ जोकर का
लब निशब्द.. कंठ अवरुद्ध
डबडबायी पलकों के कोर भिगोती
गालों तक ढलक आयीं कुछ बूंदें
थमा पुर्जा कागज़ का तुम्हारे हाथों
लौट आया..
स्वप्न लोक सा लग रहा जीवन
न देती विश्राम मुद्रा अब विश्राम की
हुई हलचल अरसे से बंद पड़ी पलकों में
खुलापन पलकों का
बंद रहने से उनके
लगा अधिक कष्टदायक
गिरना पलकों का
नियति बन गया हो जैसे
शुरू हो गया फिर
सफ़र अनवरत..
इस जीवन वृत्त का
कभी न ख़त्म होने को..!!
__________________जोगेंद्र सिंह ( 05 मई 2010_05:00pm )
नोट :- यह कोई काल्पनिक उड़ान नहीं है वरन मेरा अनुभूत किया हुआ स्कूल एवं कॉलिज के दिनों का स्वयं का अनुभव है..
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Comments
10 Responses to “बंद पलकें..”
// वे दो काली सुर्ख गहरी आँखें तुम्हारी //
जोगेंदर भाई, आँखें काली भी और सुर्ख भी? बात कुछ गले से उतर नहीं रही - इन अलफ़ाज़ पर आपकी दोबारा से नज़रेसानी बहुत ज़रूरी है !
◊▬►► योगराज जी.. हिंदी शब्दावली के अनुसार सुर्ख का प्रयोग लाल रंग के साथ इसे और अधिक गहरा दर्शाने के लिए किया जाता है.. समय के साथ साथ यह आदत में बदल गया और इसे लाल वर्ण के पर्यावाची के रूप में उपयोग किया जाने लगा...
परन्तु वास्तव में काले या किसी भी अन्य गहरे रंग के अत्यधिक गहरेपन को व्यक्त करने के लिए इस सुर्ख शब्द की अहमियत है...
Jogendraji bahut achhi poem hai..........i like it........
मेरे मोहतरम दोस्त, जिस तरह "स्याह" शब्द काले और "जर्द" शब्द पीले रंग की सुन्दरता और खासियत और गहरायी को उजागर करने के लिए इस्तेमाल किया जाते हैं बिलकुल उसी तरह ही "सुर्ख" शब्द का ताल्लुक और इस्तेमाल भी सिर्फ और सिर्फ लाल रंग के साथ ही होता है ! क्योंकि उर्दू भाषा में सुर्ख का अर्थ ही लाल होता है ! अब अगर हम सुर्ख पीला, सुर्ख नीला या सुर्ख हरा लिखेंगे तो मेरे तुच्छ विचार में तो ये अर्थ का अनर्थ करने वाली बात ही होगी !
◊▬►► योगराज जी...
आपका आभार जो अपने बड़े भाई की तरह से मुझे सही और गलत के बारे में चेताया.. जैसा कि पहले ही बता चूका हूँ कि मैं कोई सर्व ज्ञानी तो हूँ नहीं.. और न ही हिंदी का कोई प्रकांड पंडित.. मेरे ख्याल से किसी कविता की रचना और किसी भाषा का उच्च स्तर का ज्ञाता होना, दोनों में बड़ा ही फर्क है.. हाँ बेशक भूल सुधरवाई जा सकती है.. और आपके जैसा अच्छा मार्गदर्शक है मेरे पास.. फिर चिंता किस बात की..
thanx ◊▬►► Rathore bhai..
JAB MAIN YEH PADHH RAHI THI TAB YEHI SOCHA THA KI YEH KHAYAAL NAHIIN, SATYA GHATNA HAI,, AUR NEECHE DEKHA TOH MERA ANDAAZA THIK NIKLA,,, IIS MEIN SACHCHAI HAI,,,!!!!!!!!!!!KHUUB-BAHUT KHUUB,.,.,., JOGI JI,.,.,.,.
thank you ◊▬►► Lalita ji..
Touching....... unforgetable.....!!!!!! really mind-blowing!!! i lik it ur new style of autobiography.....
thanx ◊▬►► Julie..
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