द्वार तकती नज़र
घूम आती देहली तक
वक़्त कटता नहीं
तुम आ जाते..
लगा रहता है
हर आहट पे
धड़का सा
कैसे कहूँ..?
अब न करो
सेवा देश की
बँधी देश प्रेम से
क्या करूँ..?
मन चंचल
काबू न आता
बीते सावन तुम आये
गए तुम
न गयी याद तुम्हारी
अब न आते तुम
इंतजार
हर पल
उस पल का
तुमसे पहले
खबर तुम्हारी
फिर तुम आये
कफ़न में लिपटे
बहता
झर-झर निर्झर
शब्द गुम
आँसू से पहले
आँसू की कहानी
जानेगा देश
साक्षात्कार के बहाने
चीखते प्रश्न
मान मर्दन
मान के बहाने
क्यूँ न आये तुम..?
देख रही बनते
नेता को अभिनेता
उपरांत इसके
हक अपना ही पाने को
लगते चक्कर पे चक्कर
अब न होगा साक्षात्कार
न चीखते प्रश्न होंगे
धवल टुकड़ा वस्त्र का
जिंदा कफ़न अब मेरा होगा
आ जाते तुम.. क्यूँ न आये तुम..?
_____जोगेंद्र सिंह ( 22 मई 2010_02:30 am )
Note :-
◊▬►► फेसबुक पर मेरे कुछ मित्रगणों द्वारा कारगिल युद्ध तथा उसके बाद के शहीदों की विधवाओं को मिले petrol pumps एवं मिली अन्य सुविधाओं पर जोर दिया है ! वे शायद भूल गए हैं की उससे पहले भी शहीद हुआ करते थे ! काश्मीर हमारे सैनिकों के लिए हमेशा से ही कब्रगाह बना हुआ है ! उनकी एवं अन्य सुरक्षा सेवा संस्थानों के शहीदों की अगणित विधवाएं आज भी जवान हैं ! और बूढी विधवाएं आज भी जिंदा हैं !
◊▬►► ज़रा ये तथाकथित लोग अधूरा ज्ञान बांटने के बजाए उन बेचारियों को प्राप्त तकलीफों को भी अपने ज्ञान भण्डार में समाविष्ट कर लें तो बेहतर ! हाँ ये सच है कि कई विधवाओं ने बाद में लाभ भी उठा लिया परन्तु जो भीषण दुःख उन्हें भोगने मिले उसका हिसाब कौन देगा !
◊▬►► गलती को बरसों बाद आधे-अधूरे तरीके से सुधार कर अपने कर्तव्यों की इति समझ लेना ही सही ज़वाब है क्या ? किसी को मार दिया जाये और कह दो भाई sorry गलती से हो गया था, अब मैं माफ़ी चाहूँगा ! तो क्या मुर्दा ज़िदा हो सकेगा !
◊▬►► उन महिलाओं के तकलीफदेह वर्षों का लेखा जोखा कौन रखेगा ?.
Comments
3 Responses to “विधवा शहीद की”
i like this post. bhaut hi badhiya prayas he,vishayo ka khajana bhara he.
धन्यवाद @ कल्पना जी, और राणा ..
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