विरासत
Friday, 28 May 2010
- By Unknown
मेरी शर्ट का बटन तो लगा देना..
रुमाल, घडी या कुछ इसी तरह..
दिन की शुरुआत..
ऊंह.. घडी होना..!
यह भी एक सम्भावना है..
एक आम.. कुछ ज्यादा ही आम घर..
वही दो कमरे का घर.. टूटी चारपाई..
रस्सी बंधी कुर्सी की टांग..
टूटे-फूटे से तीन चार बच्चे..
दो-तीन साडी में गुज़र करती..
खुद को आया सा समझती माँ..
वे जानते ज़रूर हैं प्यार को..
पर मतलब समझने की फुर्सत ही किसे है..
फूँकनी से चूल्हे में फूँक मारते-मारते..
गैस तक का सफ़र जाने कब तय हुआ..
इस पर ध्यान किसी का न गया होगा..
घर से दफ्तर.. दफ्तर से घर..
अपने लिए कैसे जीना है..
यह समझ सीमाओं से परे की कौड़ी है..
काँय-किलबिल करते बच्चे..
हर रोज़ ठुकते बच्चे..
रोटी के टुकड़े पर भी लड़ जाते..
पानी वाली वाली चाय सभी को..
निपनिया दूध छोटे बेटे को..
ज़िम्मेदारी समझ..
बहनें इसे अपने हाथ से निभातीं..
दही एक कटोरी पानी में..
एक-एक चम्मच बँट जाता..
फोड़-फोड़ दाने दही के..
हो जाता पानी सफ़ेद शक्कर मिला..
खा जाते उससे रोटी सारी..
सब चाहें सुन्दर बेटी उसकी..
पर घर की ज़ीनत कोई न करता..
अपने से नीचा बेटी संग..
घर अपना भर लेना चाहे..
अंत समय बिस्तर पर बीते..
खाँसी बलगम जाने क्या क्या..
एक तरफ कौने में खड़ा..
रो रहा.. पा रहा बेटा..
शर्ट, बटन,रुमाल, घडी की विरासत..
_____जोगेंद्र सिंह "Jogendra Singh" (27 मई 2010_ 02:30 am )
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Comments
3 Responses to “विरासत”
एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की दशा का सटीक चित्रण!!!!
There is scope of improvement using more suitable words having more weightage and there is need for better word sequence
@ राणा.. समाज कुछ इसी तरह से रचा हुआ है कि किसी को सब कुछ मिल जाता है और किसी की जीवन गाथा तरसते हुए गुज़र जाती है..
@ Kartik.. aapki baato ke dhyaan me rakhunga.. dhanywad ishare ke liye..
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