बेवफाई
Friday, 28 May 2010
- By Unknown
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कविता कोष
उन्हें भेजे थे कुछ गुलाब,
नज़रें इनायत हों इस चाहत में..
वापस लौटा गए मेरी देहरी पर,
वो उन चाहत के फूलों को..
है बेवफाई तुम्हारी, पर..
हमने इसे नज़रें करम समझा..
आज तक सहेजे बैठे है,
कि सूखे फूलों में अब खुशबु तुम्हारी है..
_____जोगेंद्र सिंह "Jogendra Singh" ( 28 मई 2010_05:49 pm )
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Comments
6 Responses to “बेवफाई”
It is too difficult to understand.
प्रेम का एक रुप यह भी... उम्दा
▬▬► अपर्णा जी..पता नहीं क्यूँ मुश्किल लगी आपको.. मुझे तो यह पूरी तरह से प्रेम को समर्पित लगी.. लेकिन आपका सोचना भी सही हो सकता है..
▬▬► प्रतिबिम्ब जी.. यहाँ आने के लिए धन्यवाद..
जोगेंदर जी... आप की २-३ कवितायेँ पढ़ीं.... अच्छी हैं...लगा शुरू-आत तो उत्साह से होती है पर समापन तक आते-आते जल्दी में उलझ जाते हैं...
vry deep......vry nyc
@ मंजी..
थैंक्स दोस्त.. तुमने यहाँ भी मेरा साथ दिया.
@ राजेश जी..
धन्यवाद.. आपने मेरी रचना पसंद की है.. आगे से कोशिश करुंगा की आपकी आखिरी शिकायत भी समाप्त हो जाए..
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