ज़िन्दगी..
Thursday, 8 July 2010
- By Unknown
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कविता कोष
दौड़ती भागती ज़िन्दगी..
खुद ही में सिमटी ज़िन्दगी..
क्या कहूँ मैं...?
कभी न सुनने वाली ये ज़िन्दगी..
आते-जाते रोटी तलाशती ये ज़िन्दगी..
न मिले कभी तो भूखी ही सो जाती ये ज़िन्दगी..
जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 08 जुलाई 2010_10:17 pm )
Photography by : Jogendra Singh
Location : Worli Naka ( Mumbai ) ( 12-04-2010 )
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Comments
6 Responses to “ज़िन्दगी..”
बेहतरीन!
अत्यन्त मार्मिक पन्क्तियां......
जीवन के सत्य का आइना हैं ये पंक्तियाँ...क्षुधा बड़ी जानलेवा चीज़ है..
@ उड़न तश्तरी.. आपका धन्यवाद..
@ राणा प्रताप.. मर्म समझने के लिए शुक्रिया..
@ रोली.. सच में क्षुधा बड़ी ही जानलेवा चीज़ है..
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