
तक़रीबन सभी देशों के मुद्रा प्रतीक देखने दिखने लायक हैं.. जाने कितने लोगों की मेहनत और एक लम्बे रिसर्च के पश्चात् जब डिजाईन निकला भी तो क्या..? ढेंडस..?
हिंदी या संस्कृत में हम "र" लिखते हैं.. इसे ऐसा लिखना सदियों से चला आ रहा है.. एक आड़ी लाईन मार देने भर से इसे सिम्बौल का दर्ज़ा दे दिया गया.. नया क्या किया..? कमाल है..
मेरी समझ में जब आप कुछ करने जा रहे हैं और वो सदियों तक के लिए हो तो उसे कुछ हटकर और ऐसा होना चाहिए कि एक ही नज़र में भा जाये साथ ही सादापन भी हो.. लेकिन जो मुद्रा प्रतीक बनाया गया है वह मुझे किसी भी कोण से अद्वितीय नज़र नहीं आता..
भाई जब यह अच्छा है और आसन ही है तो इस आसानी में इतने बरस या महीने क्यूँ लगे..? मानव और संसाधन दोनों का इतना हर्जा क्यूँ किया गया.. और जैसा कि सरकारी कामों में होता है, धन भी भरी मात्रा में खर्च हुआ ही होगा.. जब कुछ तोप सा नहीं कर सकते तो इतने झमेले क्यूँ..? सादा लेकिन सुन्दर और भी हो सकता है जो इससे भी अधिक खूबसूरत हो सकता है.. लेकिन कोई बात नहीं हमें तो आदत है..
....(..जोगी..)
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Comments
2 Responses to “मुद्रा प्रतीक”
आप की बात का ऐंगल समझ रहा हूँ।
मैंने तो सोचा था कि प्रतीक 'ठेंगे' से मिलता जुलता होना चाहिए। पते नहीं चला नहीं तो प्रतियोगिता में जरूर भाग लेते !
एक काम करते हैं - अपने ब्लॉग पर डिजाइन पोस्ट करते हैं। प्रतीक्षा कीजिए।
चलिए बना दीजिए आप भी एक नया मुद्रा प्रतीक.. देखें उसे देख कर सरकार की अकल में भरा भुस बाहर को आता भी है कि नहीं.. हाहाहा..... :)
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