
बंद पलकों भीतर समाया है स्मृति समंदर..
अतीत के वे अनछुए पन्ने बन जिल्द पड़े हैं..
हर रोज़ समेट लाता है इक लम्हा ऐसा भी.
कर देता है जो साकार अनबनी बूंदों को भी..
जोगेंद्र सिंह Jogendra singh ( 21 जुलाई 2010_08:11 pm )
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Jogendra Singh ~ जोगेंद्र सिंह..
Comments
2 Responses to “स्मृति समंदर”
जोगी, सहज व सरल शब्दों में कितनी गहरी अभिव्यक्ति... स्म्रतियां सदैव आँसू के रूप में ही नयनों से बाहर आती हैं. बहुत ही अच्छी छोटी सी रचना...
उत्साह बढ़ने के लिए धन्यवाद @ रोली...... :)
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