पागल..
Saturday, 10 July 2010
- By Unknown
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कविता कोष
ना बहलाता हूँ दिल अपना..
ना समझाता हूँ मैं खुद को..
जग कहता हूँ मैं पागल..
मुझको लागे जग दीवाना..
हूँ मैं बातों से दीवाना..
वो हैं दीवाने दौलत के..
वो कहते जीता मैं सुध बिन..
बिन सुध दौड़ लगाते वो भी..
जग कहता हूँ मैं पागल..
मुझको लागे जग दीवाना..
_____जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 10 जुलाई 2010_08:20 pm )
Photography by : Jogendra Singh
Location : Railway Over Bridge, Vasai ( Mumbai ) ( 01-7-2010 )
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Comments
7 Responses to “पागल..”
nice
thanx my friend..
बहुत सटीक!!
जगत कहे भगत पागल
भगत कहे जगत पागल
रेल की दो समानान्तर पटरियों का मिलन असंभव है
और मिलन हो गया तो मान ही लो दुर्घटना संभव है
चोखी लागी थारी कविता चौधरी साब
राम राम
धन्यवाद @ उड़ान जी..
@ ललित शर्मा साब.. म्हानै भी थारी लाईनाँ घणी चोखी लागी हैं जी..
थानै भी म्हारी राम राम..
wah ji kya baat hai...
thanx @ Sweta.. :)
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