ऑनर-किलिंग
Monday, 5 July 2010
- By Unknown
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कविता कोष
मैं तेरे गर्भ में पली हूँ माँ..
नौ माह फिर बरस बीस..
खुद का जीवन गुजरने निमित्त..
हक क्यूँ नहीं है मुझे..
फैसले लेने का..?
गया कहाँ लाड-दुलार तुम्हारा..?
लिया जो कोई फैसला गर मैंने कहीं..
अपने फैसले संग..
आज पड़ी हूँ मिटटी पर..
मिटटी बन जाने निमित्त..
कहाँ हैं तेरी वे लोरियाँ..?
क्यूँ झूठ कहा तुमने..?
क्यूँ ख़त्म करी तूने..
इहलीला मेरी..?
दिल भी न पसीजा तेरा..
क्यूँ आते हैं माईक-मीडिया वाले..?
क्यूँ नाम धरा ऑनर-किलिंग इसका..?
छोटे चोर को तुम चोर कहते..
फिर क्यूँ होता है फर्क हत्या-हत्या में..?
हत्या का दोषी हत्यारा है..
क्यूँ पाता मुझ मासूम का दोषी..
किलिंग संग ऑनर भी..?
मारी जाती थी मैं गर्भ में..
अब भी बात वही है..
पहले गर्भ में, अब मारी जाती हूँ बाहर भी..
जोगेंद्र सिंह "Jogendra Singh" ( 05 जुलाई 2010_04:53 pm )
▬► पारिवारिक ईज्ज़त के ढकोसले के नाम पर सजातीय व विजातीय विवाहों की परिणिति वीभत्स हत्या के रूप में होती है ! मीडिया भी अपनी सही भूमिका भूल कर इसे "ऑनर-किलिंग" जैसा नाम दे देता है ! क्यूँ भाई इसमें ऑनर जैसी क्या बात है ! जैसे बड़ा कारनामा है यह !
▬► अरे जब चोर को चोर और पॉकेटमार को पॉकेटमार कहते हैं तो इन हत्याओं के दोषियों को सम्मान-ज़नक उपमान क्युओ..? इनका इन्तर्विएव लिया जाता है जैसे कितना बड़ा कारनामा कर आये हों !
▬► पुलिस दाम लेकर इनका ऑनर कर देती है, बदले में प्रेरणा पाकर ये या कोई नया ऑनर-होल्डर फिर एक नया कारनामे को अंजाम दे आते हैं !
▬► कब तक होगा यह सब..? कब तक क़ानून हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा..?
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13 Responses to “ऑनर-किलिंग”
बहुत ही भावपूर्ण पंक्तिया है भाईसाहब जो जननी बनती है उन्हे जीने का पूरा अधिकार दिया जाना चाहिए...मेरा हमेशा से मानना रहा ही की बच्चे के चाल चलन,संस्कारो मे पूरा पूरा योगदान परिवार और माहौल का होता है ...अगर लगता है की वो ग़लत करते है तो शुरुआत से ही उन्हे ढील क्यूँ दी जाती है...
आज का सारा माहौल ही गडबड है .. बच्चे इतनी कम उम्र से घरवालों से दूर रहेंगे .. तो यह सब परिणाम सामने आएंगे ही .. पढाई की सुविधा हर जगह होनी चाहिए !!
सबसे पहले मुझे इस आनर शब्द पर एतराज है , हत्या तो हत्या है चाहे वो किसी भी रूप में हो ,
आपने वास्तव में बहुत अच्छी कविता लिखी है इसी प्रकार समाज को झकझोरते रहिये ........ मेरी शुभकामनाए स्वीकार करें ........
भाई साहब मैं तो आपका फैन होता जा रहा हूँ
@ शानु शुक्ल जी.. मेरा मानना है की हत्या की यह पृथा ही समाप्त हो जनि चाहिए.. क्यूंकि हत्या से ज़घन्य एवं हेय और कोई अपराध नहीं..
@
@ संगीता जी.. माहौल चाहे जैसा भी हो तो क्या इस तरह के घ्रणित कार्यों को आप सही करार देने वाली हैं..?
पहले गर्भ में, अब मारी जाती हूँ बाहर भी...बहुत ही अच्छी व संवेदनशील रचना |
जोगी, मेरा भी यही मानना है कि पारिवारिक माहौल का बहुत असर पड़ता है बच्चों पर, अगर आप उनके निर्णयों को खुद करना चाहते हैं तो, या तो इतनी स्वतंत्रता आप दें ही ना, और अगर शुरू से ही छूट दे कर रखी है तो फिर उनके निर्णय स्वीकारिये भी| होना तो ये चाहिए की बच्चों से दोस्ताना व्यवहार रखें, उन्हें सही-गलत की शिक्षा दें, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी माँ की होती है क्योंकि आज भी भारतीय पिता बेटियों के साथ हर विषय पर बात करने में झिझकते हैं, जो उचित भी है, इसके लिए माँ होती है | उन्हें उनका भला-बुरा बताइए, वे इतने परिपक्व नहीं होते, हमने भी वो उम्र पार की है, याद आती है माता-पिता की सीख, तब कभी-कभी झल्लाहट होती थी कि- क्या हम बच्चे हैं?? बस वही मनःस्थिती याद करके बच्चों की परवरिश करना चाहिए |
Bahut hi khoobsurat wordings hai..Heart-touching...isse acha i guess is wedna ko Describe nahi kiya ja Sakta...
जोगेन्द्र जी .. आपकी रचना तो सही है .. मैने टिप्पणी में शानू शुक्ला जी कर बात का जबाब दिया था !!
@ अखिलेश जी.. आपका ऐतराज़ पूर्णतया जायज़ है.. मैंने भी इसी विषय को उठाया है अपनी रचना में..
@ स्वेता.. रचना में निहित भाव ज्यों के त्यों पाठक तक पहुंचे यही रचनाकार की सफलता होती है, सो धन्यवाद..
जी @ संगीता जी.. मैं समझ पा रहा हूँ.. धन्यवाद..
@ रोली..
आज जिसे ऑनर किलिंग कहते हैं, असल में वह है तो हत्या ही.. मीडिया ने अपनी मर्ज़ी से इतना खुबसूरत नाम दे रखा है.. मुझे आज तक यह समझ नहीं आया की मीडिया इतना गैर ज़िम्मेदार कैसे हो सकता है..? हर अपराधी जिसे जेल के सींखचों के पीछे होना चाहिए उसका इंटरव्यू ले-लेकर जाने उसे क्या बनाने में लगे रहते हैं.. पोलोश बच्चों की "A B C D" से कभी बाहर निकलना ही नहीं चाहती.. "P" for पैसा और "P" for पुलिस..
जो लोग इस गंदे काम को अंजाम देते हैं वे अपने उन बच्चों को खुला क्यों नहीं छोड़ देते की जाओ अब से हमारा-तुम्हारा कोई नाता नहीं.. मरो-जियो अब हमें कोई मतलब नहीं.. फिर संस्कार तो बचपन से डाले जाते हैं.. बहुत सी बातें होती हैं जिन्हें अक्सर हम नज़र-अंदाज़ कर जाते हैं बाद में जब वही चीज़ें बदले और बड़े रूप में सामने आती है तो उसे सहन नहीं कर पाते.. भाई जब गलती खुद की है और परवरिश खुद की fail हुई है तो खून बच्चों का क्यूँ बहे..? खुद की गलती पर खुद की हत्या क्यूँ नहीं करते ये लोग..?
▬► भ्रूण-हत्या पर मेरी एक कविता है जिसका लिंक निम्न है :-
http://jogendrasingh.blogspot.com/2010/05/blog-post_7483.html
आप लोग अगर इसे भी देखें तो बेहतर..!!
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Note : अपनी प्रतिक्रिया देते समय कृपया संयमित भाषा का इस्तेमाल करे।
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