लड़की बड़ी उदास है..
अपने में सिमटी हुई..
छिल गए हैं बस से उतरते..
उसके घुटने और कोहनी..
उठ रही तीव्र लहर पीड़ा की तन में..
तन संग मन भी है घायल..
पलकों के कोरों तक..
ढुलक आये दो आँसू..
तुरंत ही उठाना है उसे..
वरना बढ़ आयेंगे बीसियों हाथ..
जिस्म छूने के बहाने..
नकली हमदर्दी का लबादा ओढ़े..
मरा शील जिलाना है उसे..
बढे हाथ उसे गिरा देख..
धवल-वर्णी चोले के पीछे..
कलुषित सोच छिपी मानुष की..
ज़तन ये सारे सभ्य प्राणी के..
गिरा पुरुष देख कोई न आता..
देख नारी मचलते ख्वाब सारे..
होड़ लगी आऊँ दूजे से पहले..
गिद्धों की मार से घबरायी..
उनके आने से पहले..
बचा मोती अपनी लाज का..
उठी लड़की अपने आप से..
दुल्लर हुआ दर्द से..
कोमल तन रमणी का..
न आना गिद्धों के हाथ मुझे..
कृत संकल्प हो उठ चली..
सोच रही कोमला रमणी..
कैसी विडम्बना जीवन की..
समाये एक में दो इंसान..
लड़की बड़ी उदास है... !!!!!
_____जोगेंद्र सिंह ( 27 अप्रैल 2010___04:32 pm )
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((मेरे मित्र "पवन दत्ता" जी ने अपनी एक रचना मुझे publish करने के लिए मुझे दी थी ! साथ ही यह भी कहा की इसे में अपने तरीके से भी लिखूं ! रचना वही है दोनों पर हम दोनों के नाम लिखे हैं ! यहाँ कोई तुलना नहीं कीजियेगा ! उसकी कोई आवश्यकता नहीं है ! ये तो बस दो मित्रों का प्रेम है ! जो तुलना की भाषा नहीं समझता ! "पवन दत्ता" जी की कविता अपने मूल रूप में है ! ))
लड़की उदास है ! बेहद उदास ! चलती बस से उतारते वक़्त छिल गए हैं उसके घुटने और कोहनी ! भयंकर एहसास दर्द का बमुश्किल से काबू में हैं उस कि आँखों में आँसू ! उफ़ ! क्या करूँ ? उस को उठ खड़ा होना होगा तुरंत ही ! तुरंत नहीं तो बढ़ आयेंगे दसियों हाथ उस के जिस्म को छूने
कि खातिर आँखों में...नकली हमदर्दी का पुटाव लिए ! नहीं ये ! कभी नहीं ! और उठ के चल देती है लड़की ! अपने तीस मारते दर्द को शालीनता के आवरण में लपेटे हुए ! यही तो उस के पास बेमोल शर्मो हया बेशकीमती लाजो शरम जिस को टके के भाव पे ना बिकने देने के भाव लिए कृत संकल्प है ! यह लड़की उदास है बेहद उदास...
__________पवन दत्ता ( 26 अप्रैल 2010 )
Comments
3 Responses to “लड़की बड़ी उदास है..”
naari ke dard ko unkerne mein aap dondo apni tarh se safal hue hain. Purush ki mansikta ka truthful khaka khincha hai.
Gud job done!
गहरी वेदना का अनुभव जब संवेदनशीलता कों स्वर दे जाते हैं तब यह प्रतिभा जागृत होती है,
जो आपमे स्पष्ट दृष्टिगोचर है....तभी दूसरे की पीड़ा कों आप खुद महसूस करते हैं, और उसे काव्य में पिरो कर हम सब के समने रख देने में सक्छ्म हैं, बहुत बहुत आभार!
◊▬►► Aparna ji maine koi koshish nahin ki hai... ye to bas jaise ban pada vahi kiya hai...
◊▬►► Prakriti didi.. aap ki parkhi nazar aur mere prati prem mujhe aur bhi aage le jayega... bas yunhi apna haath mere sar par banaye rakhiyega...
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