सो कैसे सकता हूँ मैं...
Thursday, 15 April 2010
- By Unknown
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कविता कोष
अभी आया नहीं समय, आगोश में सो जाने का,
है करना संघर्ष बहुत सा, सो कैसे सकता हूँ मैं,
बहुत सी ज़रूरत है अभी ज़िन्दगी की मुझको,
जिंदादिली भी रहनी बन ज़रूरत संग है मेरे,
आ देख ले क़ज़ा भी आकर, होगा लौटना उसे भी,
अभी आया नहीं समय, आगोश में सो जाने का,
है करना संघर्ष बहुत सा, सो कैसे सकता हूँ मैं...
___________जोगेंद्र सिंह ( 02 अप्रैल 2010 ___ 09:14 pm )
( यह कविता मैंने अपनी एक ऐसी दोस्त के लिए लिखी है जिसने अपनी सारी आशाएँ कम कर रखी हैं... और इस कविता को लिखने के पीछे, उसमें जीवन की ऊर्जा भरना ही मेरा मकसद है... मैं चाहूँगा की वो अपने सारे नकारात्मक विचारों को अपने मस्तिष्क से निकाल फेंके और फिर से जी ले अपनी ज़िन्दगी...)
▬▬►दोस्तों◄▬▬ वो गंभीर बीमारी से ग्रस्त है...
▁▂▃▄▅▆ मेरी मित्र के लिए दिल से दुआ कीजिये ▆▅▄▃▂_
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Comments
2 Responses to “सो कैसे सकता हूँ मैं...”
Short, but brimming with emotion!
thanx @ Aparna...
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