अधखिला पहला प्यार..
Tuesday, 20 April 2010
- By Unknown
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कविता कोष
अहसास है यह ऐसा.. कहते जिसे हम प्यार हैं,
ना बस तेरा है ना ही मुझ नामुराद का इस पर,
खुशगवार सा जीवन.. दिल पागल सा हो जाता है,
चुन चुन मेहनत कर नीड़ बनाया जिस तिनके से,
उड़ हवा में हो लीन अकसर लुप्त प्राय हो जाता है,
जैसे हो टूटी पुष्प-कली अधखिली सी रह जाती है,
साहिल से पहले ही मंज़र सुनामी सा बन जाता है,
क्यूँ अक्सर पहला प्यार आधा ही बन रह जाता है?
_______जोगेंद्र सिंह ( 08 अप्रैल 2010 ___ 12:06 pm )
( यह चित्र अधूरे प्यार के लिए संकेत रूप में लिया गया है... कि किस प्रकार अकसर भरभरा कर नष्ट भ्रष्ट हो उठता है पहला प्यार...)
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2 Responses to “अधखिला पहला प्यार..”
Jogi
Sometimes love wilts away from life, and the reason remains unknown. That is life!
jee Aparna ji aisa aksar hota hai jeevan main...
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